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कतका झन देखे हें-

आगे सावन आगे ।

छागे छागे बादर करिया, आगे सावन आगे । झिमिर-झिमिर जब बरसे बदरा, मन मोरो हरियागे ।। हरियर हरियर डोली धनहा, हरियर हरियर परिया । नदिया नरवा छलकत हावे, छलकत हावे तरिया ।। दुलहन जइसे धरती लागय, देख सरग बउरागे । झिमिर-झिमिर जब बरसे बदरा, मन मोरो हरियागे ।। चिरई-चिरगुन गावय गाना, पेड़-रुख हा नाचय । संग मेचका झिंगुरा दुनो, वेद मंत्र ला बाचय ।। साज मोहरी डफड़ा जइसे, गड़गड़ बिजली लागे । झिमिर-झिमिर जब बरसे बदरा, मन मोरो हरियागे ।। नांगर-बइला टेक्टर मिल के, करे बियासी धनहा । निंदा निंदय बनिहारिन मन, बचय नही अब बन हा ।। करे किसानी किसनहा सबो, राग-पाग ला पागे । झिमिर-झिमिर जब बरसे बदरा, मन मोरो हरियागे ।।

अपने घर मा खोजत हावे, कोनो एक ठिकाना

अपने घर मा खोजत हावे, कोनो एक ठिकाना । छत्तीसगढ़ी भाखा रोवय, थोकिन संग थिराना ।। सगा मनन घरोधिया होगे, घर के मन परदेशी । पाके आमा निमुवा होगे, निमुवा गुरतुर देशी ।। अपने घर के नोनी-बाबू, आने भाषा बोलय । भूत-प्रेत के छांव लगे कस, पर के धुन मा डोलय ।। अपन ठेकवा मा लाज लगय, पर के भाये दोना । दूध कसेली धरय न कोनो, करिया लागय सोना ।। सरग म मनखे कबतक रहिही, कभू त आही नीचे । मनखे के जर धरती मा हे, लेही ओला खीचे ।।

चारो कोती ले मरना हे

झोला छाप गांव के डॉक्टर, अउ रद्दा के भठ्ठी  । करना हावे बंद सबो ला, कोरट दे हे पट्टी ।। क्लिनिक सील होगे डॉक्टर के, लागे हावे तारा । सड़क तीर के भठ्ठी बाचे, न्याय तंत्र हे न्यारा ।। सरदी बुखार हमला हावय , डॉक्टर एक न गाँव म । लू गरमी के लगे थिरा ले, तैं भठ्ठी के छाँव म।। हमर गाँव के डॉक्टर लइका, शहर म जाके रहिथे । नान्हे-नान्हे लइका-बच्चा, दरूहा ददा ल सहिथे ।। गरीबहा भगवान भरोसा, सेठ मनन सरकारी । चारो कोती ले मरना हे, अइसन हे बीमारी ।।

चोरी होगे खोर गली हा

बबा पहर मा खोर गली हा, लागय कोला बारी । ददा पहर मा बइला गाड़ी, आवय हमर दुवारी,  । नवा जमाना के काम नवा, नवा नवा घर कुरिया । नवा-नवा फेषन के आये, जुन्ना होगे फरिया ।। सब पैठा रेंगान टूटगे, टूटगे हे ओरवाती । तभो गली के काबर अब तो, छोटे लागय छाती ।। घर ओही हे पारा ओही, खोर गली ओही हे । गुदा-गुदा दिखय नही अब तो, बाचे बस गोही हे । मोर पहर के बात अलग हे, फटफटी न आवय । चोरी होगे खोर गली हा, पता न कोनो पावय ।।

डूब मया के दहरा

पैरी चुप हे साटी चुप हे, मुक्का हे करधनिया । चूरी चुप हे झुमका चुप हे, बोलय नही सजनिया ।। चांदी जइसे उज्जर काया, दग-दग ले दमकत हे । माथ बिनौरी ओठ गुलाबी, चम-चम ले चमकत हे ।। करिया-करिया बादर जइसे, चुंदी बड़ इतराये । सोलह अँग ले आरुग ओ हा, नदिया कस बलखाये । मुचुर-मुचुर ओखर हाँसी, जइसे नव बिहनिया । आंखी ले तो भाखा फूटय, जस सागर के लहरा । उबुक-चुबुक हे मोरे मनुवा, डूब मया के दहरा ।। लाख चॅंदैनी बादर होथे, तभो कुलुप अॅधियारे । चंदा एक सरग ले निकलय, जीव म जीव ल डारे ।। जोही बर के छांव जनाथे, जिनगी के मझनिया..

मोर गांव हे सुख्खा

चारो कोती पूरा पानी, मोर गांव हे सुख्खा । सबके मरकी भरे भरे हे, मोरे मरकी दुच्छा।। खेत खार के गोठ छोड़ दे, मरत हवन पीये बर । पानी पानी बर तरसत हन, घिर्रत हन जीये बर ।। नरवा तरिया सुख्खा हावे, सब्बो कुॅआ पटागे । हेण्ड़ पम्प मोटर सुते हवय, जम्मो बोर अटागे ।। घर के बाहिर जे ना जाने, भरत हवय ओ पानी । पानी टैंकर जोहत रहिथे, मोरे घर के रानी ।। धुर्रा गली उड़ावत हावे, सावन के ये महिना । घाम जेठ जइसे लागे हे, मुड़ धर के सहिना ।। काबर गुस्साये हे बादर, लइका कस ललचाथे । कभू टिपिर टापर नई करय, बस आथे अउ जाथे ।। सोचव सोचव जुरमिल सोचव, काबर अइसन होथे । काबर सावन भादो महिना, घाम उमस ला बोथे ।। बेजाकब्जा चारो कोती, रूख राई ला काटे । परिया चरिया घेरे हावस, कुॅआ बावली पाटे ।। भरे हवय लालच के हण्ड़ा, पानी मांगे काबर । अपन अपन अब हण्ड़ा फोरव,  लेके हाथे साबर ।।

हरेली

सुख के बीजा बिरवा होके, संसो फिकर ल मेटय । धनहा डोली हरियर हरियर, मनखे मन जब देखय ।। धरती दाई रूप सजावय, जब आये चउमासा । हरियर हरियर चारो कोती, बगरावत हे आसा ।। सावन अम्मावस हा लावय, अपने संग हरेली । हॅसी खुशी ला बांटत हावय, घर घर मा बरपेली । कुदरी रपली हॅसिया नागर, खेती के हथियारे । आज देव धामी कस होये, हमरे भाग सवारे ।। नोनी बाबू गेड़ी मच-मच, कूद-कूद के नाचय ।। बबा खोर मा बइठे बइठे, देख देख के हाॅसय ।।

बरस बरस ओ बरखा रानी

धान पान के सुघ्घर बिरवा, लइका जस हरषाावय । जब सावन के बरखा दाई, गोरस अपन पियावय । ठुमुक ठुमुक लइका कस रेंगय, धान पान के बिरवा । लहर लहर हवा संग खेलय, जइसे लइका हिरवा ।। खेत खार हे हरियर हरियर, हरियर हरियर परिया । झरर झरर जब बरसे पानी, भरे लबालब तरिया ।। नदिया नरवा छमछम नाचय, गीत मेचका गावय । राग झिुंगुरा छेड़े हावय, रूखवा ताल मिलावय ।। भरे भरे हे बारी बखरी, नार बियारे छाये । तुमा कोहड़ा छानही चढ़य, भाजी पाला लाये ।। जानय नही महल वाले हा, कइसे गिरते पानी । गरीबहा मन के जिनगी के, कइसन राम कहानी ।। घात डहे हवय बेंदरा हा, परवा खपरा फोरे । कूद कूद के नाचत रहिथे, कभू न रेंगे कोरे ।। झरे ओरवाती झिमिर झिमिर, घर कुरिया बड़ चूहे । हवय गाय कोठा मा पानी, तभो पहटिया दूहे ।। परछी अॅंगना एके लागे, ओधे भले झिपारी । घर कुरिया हे तरई आंजन, सिढ़ ले परे किनारी ।। मन के पीरा मन मा राखे, गावय गीत ददरिया । बरस बरस ओ बरखा रानी, बरसव बादर करिया ।। दाई परसे मेघा बरसे, तभे पेट हा भरथे । कभू कहूं ओ गुस्सा होवय, सबके जियरा जरथे ।।

छोड़ नशा पानी के चक्कर

छोड़ नशा पानी के चक्कर, नशा नाश के जड़ हे । माखुर बिड़ी दारू गांजा के, नुकसानी अड़बड़ हे ।। रिकिम-रिकिम के रोगे-राई, नशा देह मा बोथे । मानय नही जेन बेरा मा, पाछू मुड़ धर रोथे ।। उठ छैमसी निंद ले जल्दी, अपने आंखी खोलव । सोच समझ के पानी धरके, अपने मुॅह ला धोलव ।। नही त टूट जही रे संगी, जतका तोर अकड़ हे । छोड़ नशा पानी के चक्कर, नशा नाश के जड़ हे । धन जाही अउ धरम नशाही, देह खाख हो जाही । मन बउराही बइहा बानी, कोने तोला भाही । संगी साथी छोड़ भगाही, तोर कुकुर गति करके । जादा होही घर पहुॅंचाही, मुरदा जइसे धरके ।। तोर हाथ ले छूट जही रे, जतका तोर पकड़ हे । छोड़ नशा पानी के चक्कर, नशा नाश के जड़ हे । छेरी पठरू जइसे तैं हर, चाबत रहिथस गुटका। गांजा के भरे चिलम धर के, मारत रहिथस हुक्का । फुकुर-फुकुर तैं बिड़ी सिजर के, लेवत रहिथस कस ला । देशी महुॅवा दारू विदेशी, चुहकत रहिथस रस ला ।। कभू नई तो सोचे तैं हर,  ये लत हा गड़बड़ हे । छोड़ नशा पानी के चक्कर, नशा नाश के जड़ हे ।

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