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कतका झन देखे हें-

रहव मत बइठे-बइठे

बइठे-बइठे कोन हा,देही हमला खाय । कोन कहय पर ला इहां, अपने हा चिल्लाय ।। अपने हा चिल्लाय, वाह रे जांगर चोट्टा । चुहक-चुहक के खून, जोंख  कस होगे रोठ्ठा । कह ‘रमेश‘ कविराय, जगत हे अइठे-अइठे ।। हाथ-गोड़ ला पाय, रहव मत बइठे-बइठे ।।

जरे काहेेक भोमरा

जरे काहेेक भोमरा, झरे काहेक झांझ । छोड़ मझनिया के हरर, जरे जेठ के सांझ ।। जरे जेठ के सांझ, ताव आगी भठ्ठी कस । हाथ-गोड़ मुॅह-नाक, होय भाजी-पाला जस ।। कइसन के अइलाय, भाप कस जब हवा झरे । लेसावत हे देह, ओनहा हर घला जरे ।। -रमेश चौहान

मोरे घर के हाल ला

मोरे घर के हाल ला, कोन ला का बतांव । झूठ लबारी बोल के, अपने ला भरमांव ।। अपने ला भरमांव, मूंद के अपने आंखी । लइका मन के आज, जाग गे हे गा पांखी ।। बतावत आत लाज, मोर बर बरकस छोरे । गारी-गल्ला देत, रात दिन बेटा मोरे ।।

तभो ददा हा, समझाथे

जेखरे भरोसा, पांच परोसा, तीनो बेरा, ओ खाथे । सुत उठ बिहनिया, खरे मझनिया, रात बियारी, धमकाथे । घर बइठे बइठे, काबर अइठे, अपन रौब ला, देखाथे । ददा ला ना भावय, ना डररावय, तभो ददा हा, समझाथे ।। बेटा बातें सुन, थोकिन तै गुन, अपने जीवन, तै गढ़ ना । दुनिया इक मेला, पड़ न झमेला, रद्दा आघू , तै बढ़ ना ।। हे गा पूछारी, सबो दुवारी, काम बुता ला, जे जाने । सुन बेटा हमार, हवय दरकार, अपने हिम्मत, जे माने ।। हे तोरे अंदर, एक समुंदर, जेला तोला, हे मथना । जब खुदे कमाबे, अमृत ल पाबे, जेला तोला, हे चखना ।। अपने बांटा धर, लालच झन कर, देखा-देखी, दुनिया के । बात मान अतके, झन रह सपटे, बन जाबे तै, गुनिया के ।।

लाल होगे हे जंगल

जंगल झाड़ी तोर हे, रूख राई हर तोर । मनखे मनखे तोर हे,काबर मचाय शोर ।। काबर मचाय शोर, धरे बंदूक खांध मा । सिधवा ला बहकाय, घूसरे हवस मांद मा ।। तहीं बरोबर सोच, होहि कइसे गा मंगल । कब तक पीबे खून, लाल होगे हे जंगल ।

कान्हा बंशी जब फुके

कान्हा बंशी जब फुके, झरे झमा झम राग । चेतन मा कोने कहय, जड़ मा जागे अनुराग ।। जड़ मा जागे अनुराग, होय राधा कस माटी । धुर्रा बने उडाय, छुये कान्हा के साटी ।। ब्रज के ठुठवा पेड़, राग सुन होगे नान्हा । नान्हा-नानचुक घाट-बाट चिल्लाय, अरे ओ कान्हा-कान्हा ।।

जीवन मा अनमोल

जीवन मा अनमोल हे, दाई ददा हमार । जेखर ले तन हा मिले, मिले हवय संसार ।। मिले हवय संसार, जिहां हे एक खजाना । कठिन डगर हे फेर, जिहां मुश्किल हे जाना ।। मुश्किल करे असान, हमर बर बन संजीवन। कदम कदम रेंगाय, बतावत अपने जीवन ।। -रमेश चौहान

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