कान्हा बंशी जब फुके, झरे झमा झम राग ।
चेतन मा कोने कहय, जड़ मा जागे अनुराग ।।
जड़ मा जागे अनुराग, होय राधा कस माटी ।
धुर्रा बने उडाय, छुये कान्हा के साटी ।।
ब्रज के ठुठवा पेड़, राग सुन होगे नान्हा । नान्हा-नानचुक
घाट-बाट चिल्लाय, अरे ओ कान्हा-कान्हा ।।
चेतन मा कोने कहय, जड़ मा जागे अनुराग ।।
जड़ मा जागे अनुराग, होय राधा कस माटी ।
धुर्रा बने उडाय, छुये कान्हा के साटी ।।
ब्रज के ठुठवा पेड़, राग सुन होगे नान्हा । नान्हा-नानचुक
घाट-बाट चिल्लाय, अरे ओ कान्हा-कान्हा ।।
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