जागव जागव अब बस्तरिहा, लावव संगी नवा बिहान । तोर छोड़ के कोनो ऊंहा, कर सकय न थोरको निदान ।। तपत हवे तूहरे भरोसा, तू ही मन ला ढाल बनाय । तू ही मन ला मार मार के, तू ही मन ला खूब डराय ।। धरे बम्म अउ गोला बारूद, लूटे तोरे तीर कमान । जंगल मा ओ कब्जा करके, लूटत हे तोरे पहिचान ।। काट-काट विकास के रद्दा, जंगल राखे तोला धांध । देख सकव झन जग हे कइसे, राखे खूंटा तोला बांध ।। अपन आप ला मितान कहिके, तोरे गरदन देथे घोठ । तोरे बर ओ बनाय फांदा, जीभ निकाले करथे गोठ ।। एक-एक तो ग्यारा होथे, देखव तुम सब हाथ मिलाय हो जव लकडी के गठरी कस, गांठ मया के देव लगाय । खोल सरग तक अपने पांखी, उड जावव न फांदा समेत । कब तक तू मन सूते रहिहव, अब तो हो जावव ग सचेत ।। जंगल के तू ही मन राजा, भालू चीता षेर हराय । बैरी सियार मन ला काबर, अब तू मन रहिथव डरराय । दम भर दहाड तै जंगल मा, डारा पाना सुन के झर जाय । सियार सुन के दहाड़ तोरे, जिहां रहय ऊंहे मर जाय ।।
पुस्तक: मानसिक शक्ति-स्वामी शिवानंद
-
मानसिक शक्ति THOUGHT POWER का अविकल रूपान्तर लेखक श्री स्वामी शिवानन्द
सरस्वती
3 माह पहले