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संदेश

कतका झन देखे हें-

एक अकेला आय तै

एक अकेला आय तै, जाबे तै हर एक । का गवाय का पाय हस, ध्यान लगा के देख । ध्यान लगा के देख, करे काखर हस तै जै । मनखे चोला पाय, बने हस का मनखे तै ।। मनखेपन भगवान, जेन हा लगय झमेला । पूजे का भगवान, होय तै एक अकेला ।। -रमेश चौहान

रद्दा रेंगत जाव रे

रद्दा रेंगत जाव रे, रेंगे से हे काम । चाहे बाधा लाख रहय, कर झन तै आराम ।। कर झन तै आराम, मिलत ले अपने मंजिल । नदिया नरवा देख, टोर बाधा हे संदिल ।। चाटी चढ़य पहाड़, देख तो ओखर माद्दा। तै तो दिमागदार, छोड़थस काबर रद्दा ।। -रमेश चौहान

मया हंव मै तोर

डारा पाना डोल के, कहय हवा ले बात । मोरे डोले तै बहे, कहां तोर अवकात ।। कहां तोर अवकात, बिना मोरे का पुरवाही । रहंव जब खामोस, कोन तोला रे भाही ।। हवा पूछय मनात, चढे काबर हे पारा । मया हंव मै तोर, तहीं जोही अस डारा ।। -रमेश चौहान

कोदू राम ‘दलित‘

लइका रामभरोस के, टिकरी जेखर गांव । छत्तीसगढि़या जन कवि,‘कोदू‘ ओखर नाव ।। ‘कोदू‘ ओखर नाव, जेन हर‘दलित‘ कहाये । ओखर कुंडलि छंद, आज ले गजब सुहाये।। जन मन के तकलीफ, लिखे हे जेन ह ठउका । हवय अरूण हेमंत, बने ओखर दू लइका ।। कोदू राम ‘दलित‘ हमर, कहाय माटी पूत । जन मन पीरा जे बुने, जइसे बुनथे सूत ।। जइसे बुनथे सूत, बुने हे दोहा कुंडलि । दोहा पारय खूब, गांव के राउत मंडलि ।। गोठ कहे हे पोठ, छोड़ के बदरा-बोदू । जन जन हा चिल्लाय, अमर रहिहव गा कोदू ।। हमर नवागढ़ गांव के, कालेज हवय शान । कोदू राम ‘दलित‘ हवय, जेखर सुघ्घर नाव ।। जेखर सुघ्घर नाव, गांव मा अलख जगाये । सिक्छा के परभाव, सबो कोती बगराये ।। करे ‘दलित‘  कस काम, दबे कुचले बर अढ़बढ़ । लइका लइका आज, पढ़े हे हमर नवागढ़ ।।

बिलवा कइसे होय

भाथें अपने काम ला, मनखे नेता होय । मान विरोधी आन ला, काहेक के बिट्टोय ।। काहेक के बिट्टोय, अंगरी देखा देखा । कोनो कहां बताय, काम के लेखा जोखा ।। अपने आंखी मूंद, लाल ला पियर बताथें । कइसनो कर डार, काम ला अपने भाथें ।। खुरसी के ओ रंग ले, रंग जथे सब कोय । सादा तो ओ हर रहय, बिलवा कइसे होय ।। बिलवा कइसे होय, समझ तो सकय न कोनो । बइठे म लगय एक, शेर अउ सियार दूनो  ।। चिन्हय संगी कोन, बने काखर हे करसी । डोल सकय मत जेन, रखे मा अइसन खुरसी ।।

जुन्ना पारा गांव के

जुन्ना पारा गांव के, धंधाय हवय आज । बेजाकब्जा के हवय, खोर गली मा राज ।। खोर गली मा राज, गांव के दुश्मन मन के । अपन गुजारा देख, गली छेके हे तन के ।। कहत हवे ग ‘रमेश‘, बात ला थोकिन गुन्ना । चातर कर दे खोर, नीक लगही गा जुन्ना ।।

सुरता झीरम कांड के

सुरता झीरम कांड के, ताजा होगे आज । जेमा हारे तो रहिन, लोकतंत्र के राज ।। लोकतंत्र के राज, शहीद होइन गा नेता । समय कठिन गे बीत, धरे मुठ्ठी मा रेता ।। ताजा हे वो घाव, बचे हे अब तक क्रुरता । कइसे होही नाश, जाय कइसे ओ सुरता ।।

जागव जागव अब बस्तरिहा

जागव जागव अब बस्तरिहा, लावव संगी नवा बिहान । तोर छोड़ के कोनो ऊंहा, कर सकय न थोरको निदान ।। तपत हवे तूहरे भरोसा, तू ही मन ला ढाल बनाय । तू ही मन ला मार मार के, तू ही मन ला खूब डराय ।। धरे बम्म अउ गोला बारूद, लूटे तोरे तीर कमान । जंगल मा ओ कब्जा करके, लूटत हे तोरे पहिचान ।। काट-काट विकास के रद्दा, जंगल राखे तोला धांध । देख सकव झन जग हे कइसे, राखे खूंटा तोला बांध ।। अपन आप ला मितान कहिके, तोरे गरदन देथे घोठ । तोरे बर ओ बनाय फांदा, जीभ निकाले करथे गोठ ।। एक-एक तो ग्यारा होथे, देखव तुम सब हाथ मिलाय हो जव लकडी के गठरी कस, गांठ मया के देव लगाय । खोल सरग तक अपने पांखी, उड जावव न फांदा समेत । कब तक तू मन सूते रहिहव, अब तो हो जावव ग सचेत ।। जंगल के तू ही मन राजा, भालू चीता षेर हराय । बैरी सियार मन ला काबर, अब तू मन रहिथव डरराय । दम भर दहाड तै जंगल मा, डारा पाना सुन के झर जाय । सियार सुन के दहाड़ तोरे, जिहां रहय ऊंहे मर जाय ।।

कोन हा दुख ला सहिथे

कहिथे सब सरकार के, हवय न ऐमा दोष । जेन ल देखव तेन हा, उतारत हवे रोष।। उतारत हवे रोष, कहे ला करत नई हे । सपना के ओ गोठ, थोरको भरत नई हे ।। पूछत हवे ‘रमेश‘, कोन हा दुख ला सहिथे । सपना देखय जेन, सबो झन येही कहिथे ।।

भरय नही गा पेट हा

भरय नही गा पेट हा, होय मा कलमकार । कलाकार ला कोन हा, देथे पइसा चार ।। देथे पइसा चार, कोन हर गा इज्जत ले । बिधुन अपनेच काम, मस्त हे बेइज्जत ले ।। डौकी लइका रोय, कोडि़हा कहय सही गा । कविता लिख गा गीत, पेट हा भरय नही गा ।।

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