लइका रामभरोस के, टिकरी जेखर गांव ।
छत्तीसगढि़या जन कवि,‘कोदू‘ ओखर नाव ।।
‘कोदू‘ ओखर नाव, जेन हर‘दलित‘ कहाये ।
ओखर कुंडलि छंद, आज ले गजब सुहाये।।
जन मन के तकलीफ, लिखे हे जेन ह ठउका ।
हवय अरूण हेमंत, बने ओखर दू लइका ।।
कोदू राम ‘दलित‘ हमर, कहाय माटी पूत ।
जन मन पीरा जे बुने, जइसे बुनथे सूत ।।
जइसे बुनथे सूत, बुने हे दोहा कुंडलि ।
दोहा पारय खूब, गांव के राउत मंडलि ।।
गोठ कहे हे पोठ, छोड़ के बदरा-बोदू ।
जन जन हा चिल्लाय, अमर रहिहव गा कोदू ।।
हमर नवागढ़ गांव के, कालेज हवय शान ।
कोदू राम ‘दलित‘ हवय, जेखर सुघ्घर नाव ।।
जेखर सुघ्घर नाव, गांव मा अलख जगाये ।
सिक्छा के परभाव, सबो कोती बगराये ।।
करे ‘दलित‘ कस काम, दबे कुचले बर अढ़बढ़ ।
लइका लइका आज, पढ़े हे हमर नवागढ़ ।।
छत्तीसगढि़या जन कवि,‘कोदू‘ ओखर नाव ।।
‘कोदू‘ ओखर नाव, जेन हर‘दलित‘ कहाये ।
ओखर कुंडलि छंद, आज ले गजब सुहाये।।
जन मन के तकलीफ, लिखे हे जेन ह ठउका ।
हवय अरूण हेमंत, बने ओखर दू लइका ।।
कोदू राम ‘दलित‘ हमर, कहाय माटी पूत ।
जन मन पीरा जे बुने, जइसे बुनथे सूत ।।
जइसे बुनथे सूत, बुने हे दोहा कुंडलि ।
दोहा पारय खूब, गांव के राउत मंडलि ।।
गोठ कहे हे पोठ, छोड़ के बदरा-बोदू ।
जन जन हा चिल्लाय, अमर रहिहव गा कोदू ।।
कोदू राम ‘दलित‘ हवय, जेखर सुघ्घर नाव ।।
जेखर सुघ्घर नाव, गांव मा अलख जगाये ।
सिक्छा के परभाव, सबो कोती बगराये ।।
करे ‘दलित‘ कस काम, दबे कुचले बर अढ़बढ़ ।
लइका लइका आज, पढ़े हे हमर नवागढ़ ।।
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