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संदेश

कतका झन देखे हें-

गरीब कुरिया मोर

चिखला हे हर पाॅंव मा, अंधियार हर ठांव । झमा-झमा पानी गिरे, कती करा मैं जांव ।। कती करा मैं जांव, छानही तरई आंजन । बाहिर बूंद न जाय, निंद हम कइसे भांजन ।। करे गोहार ‘रमेशः, कोन देखय गा दुख ला । गरीब कुरिया मोर, अंगना घर मा हे चिखला ।

विश्व सिकल सेल दिवस मा -

बड़ दुखदायी रोग हे, नाम हे सिकल सेल । खून करे हॅसिया बनक, करे दरद के खेल ।। करे दरद के खेल, जोड़ मा हॅसिया रोके । कहां ऐखर इलाज, दरद पेले मुड़ धोके ।। फोलिक एसिड़ संग, खूब पानी फलदायी । शादी मा रख ध्यान, रोग हे बड़ दुखदायी ।। -रमेश चौहान

योग भगाथे रोग ला

योग भगाथे रोग ला, कहे हवे विद्वान । सिद्ध करे हे बात ला, दुनिया के विग्यान ।। दुनिया के विग्यान, परख डारे हे ऐला । कहे संयुक्त राष्ट्र, योग कर छोड़ झमेला ।। हमर देश के नाम, योग जग मा बगराथे । मान लौव सब बात, रोग ला योग भगाथे ।।

काज कर धरम करम के

धरम करम के बात हा, कुरीति आज कहाय । चमत्कार विग्यान के, देख सबो मोहाय ।। देख सबो मोहाय, आज के हमरे मुन्ना । एक्को झन नइ भाय, गोठ ला हमरे जुन्ना ।। चमत्कार हे देह, धरम हे प्राण देह के । मिलही तोला मोक्छ, काज कर धरम करम के ।।

आज बचपना बचा दव

पढ़ा लिखा लव ज्ञान बर, देवव जी संस्कार । नान्हे लइका ला अपन, पढ़ई मा झन मार ।। पढ़ई मा झन मार, लदक के बोझा मुड़ मा । लइकापन छोड़ाय, जहर देवव मत गुड़ मा ।। कह ‘रमेश‘ कविराय, आज बचपना बचा दव । छोड़व मार्डन सोच, ज्ञान बर पढ़ा लिखा लव ।।

पांव पखारे शिष्य के

पांव पखारे शिष्य के, गुरू मन हर आज । चेला जब भगवान हे, गुुरू के का काज ।। गुुरू के का काज, स्कूल हा होटल होगे । रांध खवा के भात, जिहां गुरूजी हा सोगे ।। कागज मा सब खेल, देख तै मन ला मारे । लइका होगे पास, चलव गा पांव पखारे ।।

आगे रे बरसात

झूम झमा झम झूम के, आगे रे बरसात । चिरई चिरगुन के घला, खुशी अब ना समात ।। खुषी अब ना समात, चहक के गाय ददरिया । झिंगूरा ह बजाय, चिकारा होय लहरिया ।। करय मेचका टेर, गुदुम बाजा कस दम दम । मजूर डेना खोेल, नाचथे झूम झमा झम ।।

मोर मन हा गे डोल

धीरे-धीरे कान मा, मधुरस दिस ओ घोल । बोलिस ना बताइस कुछु, मोर मन हा गे डोल ।। मोर मन हा गे डोल, देह के रूआब पाके । छेडि़स सरगम गीत, स्वास ले तीर म आके ।। मुच-मुच ओ हर हाॅस, मोर हिरदय ला चीरे । आॅखी आॅखी डार, बोल दिस धीरे-धीरे ।।

होय ओ कइसे ज्ञानी

ज्ञानी आखर के कभू, होथे कहां गुलाम । पढ़े-लिखे हर आदमी, होवय ना विद्वान ।। होवय ना विद्वान, रटे ले पोथी पतरा । साकुर करे विचार, धरे पोटारे कचरा ।। अपन सोच ल बिसार, पिये दूसर के पानी । पढ़े-लिखे के काम, होय ओ कइसे ज्ञानी ।।

लइका हा लइका रहय

लइका हा लइका रहय, कोन रखे हे ध्यान । बांधे हे छोटे-बड़े, लइकापन के मान ।। लइकापन के मान, हवय खेले कूदे मा । पढ़ई लिखई के नाम, बांध दे हें खूटा मा । पढ़ बाबू दिन-रात, बचा इज्जत के फइका । अव्वल तै हर आंव, कहे सब मोरे लइका ।।

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