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संदेश

कतका झन देखे हें-

रंधहनी मा झाक तो

रंधहनी मा झाक तो, कइसे बनथे भात । माई लोगिन का करे, कइसे ओ सिरजात ।। कइसे ओ सिरजात, चूलहा मा आगी जी । कइसे रांधे भात, रांधते कइसे भाजी जी ।। दया मया ला डार, बनाये हवय सही मा । जेवन हर ममहाय, तभे तो रंधहनी मा ।।

सरग उतर गे खेत मा

सरग उतर गे खेत मा, छोड़ के आसमान । करत हवे बावत गजब, जिहां हमरे किसान ।। जिहां हमरे किसान, भुंइया के जतन करत हे । धरती के भगवान, जगत बर धान छिछत हे ।। देखत अइसन काम, सुरुज हा घला ठहर गे । देखे के ले साध, खेत मा सरग उतर गे ।।

जइसे बोबे बीजहा

जइसे बोबे बीजहा, तइसे पाबे बीज । बर्रे काटा बोय के, चाउर खोजेे खीझ । चाउर खोजे खीझ, धान तै हर बिन बोये । काम बनाथे भाग , समझलव जी हर कोये ।। कह ‘रमेश‘ कवि राय, बुता करलव जी अइसे । करलव जी साकार, तोर सपना हे जइसे ।।

नागर बोहे कांध मा

नागर बोहे कांध मा, किसान जावत खेत । संग सुुवारी हा चले, कुदरी रपली लेत ।। कुदरी रपली लेत, बीजहा बोहे मुड़ मा । बइला रेंगे संग, चलत हे अपने सुर मा । पहुॅचे हे जब खेत, सरग ले लगथे आगर । अर्र अर-तता गीत, गात जब जोते नागर ।।

गरीब कुरिया मोर

चिखला हे हर पाॅंव मा, अंधियार हर ठांव । झमा-झमा पानी गिरे, कती करा मैं जांव ।। कती करा मैं जांव, छानही तरई आंजन । बाहिर बूंद न जाय, निंद हम कइसे भांजन ।। करे गोहार ‘रमेशः, कोन देखय गा दुख ला । गरीब कुरिया मोर, अंगना घर मा हे चिखला ।

विश्व सिकल सेल दिवस मा -

बड़ दुखदायी रोग हे, नाम हे सिकल सेल । खून करे हॅसिया बनक, करे दरद के खेल ।। करे दरद के खेल, जोड़ मा हॅसिया रोके । कहां ऐखर इलाज, दरद पेले मुड़ धोके ।। फोलिक एसिड़ संग, खूब पानी फलदायी । शादी मा रख ध्यान, रोग हे बड़ दुखदायी ।। -रमेश चौहान

योग भगाथे रोग ला

योग भगाथे रोग ला, कहे हवे विद्वान । सिद्ध करे हे बात ला, दुनिया के विग्यान ।। दुनिया के विग्यान, परख डारे हे ऐला । कहे संयुक्त राष्ट्र, योग कर छोड़ झमेला ।। हमर देश के नाम, योग जग मा बगराथे । मान लौव सब बात, रोग ला योग भगाथे ।।

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