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संदेश

कतका झन देखे हें-

बुड्ती हा लागत हे उत्ती

बुड़ती ले उत्ती डहर, चलत हवे परकास । भले सुरूज उत्ती उगय, अंतस धरे उजास । अंतस धरे उजास, कोन झांके हे ओला । आंखी आघू देख, सबो बदले हे चोला ।। चले भेडि़या चाल, बिसारे अपने सुरती । उत्ती ला सब छोड़, देखथे काबर बुड़ती ।। जेती ले निकले सुरूज, ऊंहा होय बिहान । बुड़े जिहां जाके सुरूज, रतिहा ऊंहा जान ।। रतिहा ऊंहा जान, जिहां सब बनावटी हे । चकाचैंध के घात, चीज सब सजावटी हे ।। पूछत हवे ‘रमेश‘,  तुमन जाहव गा केती । सिरतुन होय उजास, सुरूज हा होथे जेती ।। उत्ती के बेरा सुरूज, लगथे कतका नीक । उवत सुरूज ला देख के, आथे काबर छीक ।। आथे काबर छीक, करे कोनो हे सुरता । जींस पेंट फटकाय, छोड़ के अपने कुरता ।। सुरूज ढले के बाद, जले हे दीया बत्ती । बुड़ती नजर जमाय, खड़े काबर हे उत्ती ।।

दाई बेटा ले कहे

दाई बेटा ले कहे, तैं करेजा हस मोर । जब बेटा हा बाढ़ गे, सपना ला दिस टोर ।। सपना ला दिस टोर, आन ला जिगर बसाये । छोड़े घर परिवार, जवानी अपन देखाये ।। सुन लव कहे ‘रमेश‘, सोच के करव सफाई । दुनिया के भगवान, तोर बर तोरे दाई ।।

उठ तैं भिनसार

छोड़ अलाली जाग तैं, होगे हवय बिहान । चढ़त जात हे गा सुरूज, देख निहार मितान ।। देख निहार मितान, डोहड़ी घला फूलगे । चिरई चिरगुन बोल,  हवा मा कइसे मिलगे । हवा लगत हे नीक, नीक हे बादर लाली । उत्ती बेरा देख, जाग तैं छोड़ अलाली ।। कुकरा हा भिनसार के, बोलत हे गा बोल । जाग कुकरू कू जाग तैं, अपन निंद ला खोल ।। अपन निंद ला खोल, छोड़ खटिया पलंग गा । घूमव जाके खार, बनव संगी मतंग गा ।। कर लव कुछु व्यायाम, बात ला झन तो ठुकरा । घेरी घेरी बेर, कुकरू कू बोलत कुकरा ।। पुरवाही सुघ्घर चलत, गुदगुदात हे देह । तन मन पाये ताजगी, जेन करे हे नेह ।। जेन करे हे नेह, बिहनिया ले जागे हे । खुल्ला जगह म घूम, हवा ला जे पागे हे ।। धरती के सिंगार, सबो के मन ला भाही । उठ तैं भिनसार, चलत सुघ्घर पुरवाही ।।

बिचारा हा अनाथ बन

लइकापन ओ छोड़ के, बनगे हवय सियान । करय काम ओ पेट बर, देवय कोने ध्यान ।। देवय कोने ध्यान, बुता ओ काबर करथे । लइकामन ला छोड़, ददा हा काबर मरथे ।। सहय समय के मार, बिचारा हा अनाथ बन । करत करत काम, छुटे ओखर लइकापन ।।

कतका तैं इतराय हस

राम राम कह राम, जगत ले तोला तरना । आज नही ता काल, सबो ला तो हे मरना ।। मृत्युलोक हे नाम, कोन हे अमर जगत मा । जप ले सीताराम, मिले हे जेन फकत मा ।। अपन उमर भर देख ले, का खोये का पाय हस । लइका पन ले आज तक, कतका तैं इतराय हस ।।

अटकन बटकन दही चटाका

चौपाई छंद अटकन बटकन दही चटाका । झर झर पानी गिरे रचाका लउहा-लाटा बन के कांटा । चिखला हा गरीब के बांटा तुहुुर-तुहुर पानी हा आवय । हमर छानही चूहत जावय सावन म करेला हा पाके । करू करू काबर दुनिया लागे चल चल बेटी गंगा जाबो । जिहां छूटकारा हम पाबो गंगा ले गोदावरी चलिन । मरीन काबर हम अलिन-गलिन पाका पाका बेल ल खाबो । हमन मुक्ति के मारग पाबो छुये बेल के डारा टूटे । जीये के सब आसा छूटे भरे कटोरा हमरे फूटे । प्राण देह ले जइसे छूटे काऊ माऊ छाये जाला । दुनिया लागे घात बवाला -रमेश चौहान

हमर जुन्ना खेल

कुण्‍डलियां गिल्ली डंडा खेलबो, चल संगी दइहान । गोला घेरा खिच के, पादी लेबो तान । पादी लेबो तान, खेलबो सबो थकत  ले । देबोे संगी दांव, फेर तो हमन सकत ले ।।। अभी जात हन स्कूल, उड़ावा मत जी खिल्ली । पढ़ लिख के हम सांझ, खेलबो फेरे गिल्ली ।। चलव सहेली खेलबो, जुर मिल फुगड़ी खेल । माड़ी मोड़े देख ले, होथे पावे के मेल ।। होथे पांवे के मेल, करत आघू अउ पाछू । सांस भरे के खेल, काम आही ओ आघू ।। पुरखा के ये खेल, लगय काबर ओ पहेली । घर पैठा रेंगान, खेलबो चलव सहेेली ।। अटकन बटकन गीन ले, सबो पसारे हाथ । दही चटाका बोल के, रहिबो संगे साथ ।। रहिबो संगे साथ, लऊहा लाटा बन के । कांटा सूजी छांट, काय लेबे तैं तन के ।। कांऊ मांऊ बोल, कान धर लव रे झटकन । कतका सुघ्घर खेल, हवय गा अटकन बटकन ।। नेती भवरा गूंथ के, दे ओला तैं फेक । घूमे लगाय रट्ट हे, आंखी गड़ाय देख ।। आंखी गड़ाय देख, खेल जुन्ना कइसे हे । लकड़ी काढ़ बनाय,  बिही के फर जइसे हे ।। लगय हाथ के जादू, जेन हर तोरे सेती । फरिया डोरी सांट, बनाले तैं हर नेती ।। धर के डंडा हाथ मा, ऊपर तैं हर टांग । हम तो ओला कोलबो, जावय बने उचांग ।। जावय बने उचांग, फेर तो डंडा

वाह रे तैं तो मनखे

मनखे काबर तैं करे, अइसन कोनो काम । जगह जगह ला छेक के, अपन बिगाड़े धाम ।। अपन बिगाड़े धाम, कोन ला हे गा भाये । चाकर रद्दा छोड़, कोलकी जउन बसाये ।। रोके तोला जेन, ओखरे बर तैं सनके । मनखे मनखे कहय, वाह रे तैं तो मनखे ।। कइसे ये दुनिया हवय, बनथे खुद निरदोस । अपन आप ला छोड़ के, दे दूसर ला दोस ।। दे दूसर ला दोस, दोस ला अपन लुकावै घेरी बेरी दोस, जमाना के बतलावै ।। होवत दुरगति गांव, बनेे सब पथरा जइसे । पथरा के भगवान, देख मनखे हे कइसे ।।

अंधा हे कानून हा

अंधा हे कानून हा, कहिथे मनखे झार । धरे तराजू हाथ मा, खड़े हवय दरबार ।। खड़े हवय दरबार, बांध आंखी मा पट्टी । धनी गुणी के खेल, बने हे जइसे बट्टी ।। समझय कहां गरीब, हवय ये कइसन धंधा । मनखे मनखे देख, जेन बन जाथे अंधा ।। -रमेश चौहान

जगत अच्छा हे कइसे

जइसे दुनिया  हे बने, ओइसने हे आज । अपन सोच अनुसार तैं, करथस अपने काज ।। करथस अपने काज, सही ओही ला माने । दूसर के ओ सोच, कहां तैं हर पहिचाने ।। अंतस अपने झांक, जगत अच्छा हे कइसे । जगत दिखे हे साफ, सोच हे तोरे जइसे ।।

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