बुड़ती ले उत्ती डहर, चलत हवे परकास । भले सुरूज उत्ती उगय, अंतस धरे उजास । अंतस धरे उजास, कोन झांके हे ओला । आंखी आघू देख, सबो बदले हे चोला ।। चले भेडि़या चाल, बिसारे अपने सुरती । उत्ती ला सब छोड़, देखथे काबर बुड़ती ।। जेती ले निकले सुरूज, ऊंहा होय बिहान । बुड़े जिहां जाके सुरूज, रतिहा ऊंहा जान ।। रतिहा ऊंहा जान, जिहां सब बनावटी हे । चकाचैंध के घात, चीज सब सजावटी हे ।। पूछत हवे ‘रमेश‘, तुमन जाहव गा केती । सिरतुन होय उजास, सुरूज हा होथे जेती ।। उत्ती के बेरा सुरूज, लगथे कतका नीक । उवत सुरूज ला देख के, आथे काबर छीक ।। आथे काबर छीक, करे कोनो हे सुरता । जींस पेंट फटकाय, छोड़ के अपने कुरता ।। सुरूज ढले के बाद, जले हे दीया बत्ती । बुड़ती नजर जमाय, खड़े काबर हे उत्ती ।।
पुस्तक: मानसिक शक्ति-स्वामी शिवानंद
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मानसिक शक्ति THOUGHT POWER का अविकल रूपान्तर लेखक श्री स्वामी शिवानन्द
सरस्वती
3 माह पहले