चौपाई छंद
अटकन बटकन दही चटाका । झर झर पानी गिरे रचाका
लउहा-लाटा बन के कांटा । चिखला हा गरीब के बांटा
तुहुुर-तुहुर पानी हा आवय । हमर छानही चूहत जावय
सावन म करेला हा पाके । करू करू काबर दुनिया लागे
चल चल बेटी गंगा जाबो । जिहां छूटकारा हम पाबो
गंगा ले गोदावरी चलिन । मरीन काबर हम अलिन-गलिन
पाका पाका बेल ल खाबो । हमन मुक्ति के मारग पाबो
छुये बेल के डारा टूटे । जीये के सब आसा छूटे
भरे कटोरा हमरे फूटे । प्राण देह ले जइसे छूटे
काऊ माऊ छाये जाला । दुनिया लागे घात बवाला
-रमेश चौहान
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