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संदेश

कतका झन देखे हें-

अब तो बैरी ला मार गिरावव जी

फोकट फोकट झन गोठियाव संगी काम के बात बतावव जी कइसे आतंक के नाम बुताही बने फोर के समझावव जी कोन परदा के पाछू बइठे आतंकी पिला जनमावय जी कोन ओला चारा पानी दे रुखवा कस सिरजावय जी कोन जयचंद विभषण बनके अपने भाई ला मरवावय जी कबतक हम लेसावत रहिबो रद्दा कोनो देखावव जी दूसर मा अतका दम कहां हे अपने घर संभालव जी जुंवा-लिख काहेक पट्टा गे हे अपने मुडी मिंजवावव जी कबतक हम केवल कहत रहिबो अब तो बैरी ला मार गिरावव जी

चार ठन दोहा

मनखे लीला तोर तो, जाने ना भगवान । बन गे दानव देवता, बने नही इंसान ।। गाली अपने आप ला. कब तक देहू आप । चाल ढाल अपने बदल. काबर करथस पाप ॥ करथे सब झन गोठ भर. काम करय ना कोय । काम कहू सब झन करय. गोठे काबर होय ॥ बदलव अपने आप ला. बदल जही संसार । देख देख संसार ला. काबर बदले झार ॥ तहूँ बने गुरु अउ महूँ. चेला बनही कोन । पूछ पूछ ओखर डहर. काबर ब इठे मोन ॥ -रमेश चौहान

कहय शहिद के बेटवा

बादर करिया छाय, कुलुप लागे घर कुरिया । कब तक रहि धंधाय, खड़े आतंकी ओ करिया ।। केवल छाती तान, शहिद सैनिक मन होये । हम मारे हन चार, बीस सैनिक ला खोये ।। कहय शहिद के बेटवा, बैरी के अब घर घुसर । बिला म घुसरे साप के, मुड ला पथरा मा कुचर ।।

नवा साल के बधाई

नवा साल के आप ला, हवय बधाई खूब । नवा साल मा रात दिन, रहव खुशी मा डूब ।। दुख हा भागय तोर ले, कोसो कोसो दूर । खुशी मिलय गा रात दिन, अन्न-धन्न भरपूर ।।

नवा बछर

नवा बछर तिहार असन, बाॅटय खुशी हजार । ले लव ले लव तुम अपन, दूनों हाथ पसार ।। नवा नवा मा हे भरे, नवा खुशी के आश । छोड़ बात दुख के अपन, मन मा भर बिसवास ।। काली होगे काल के, ओखर बात बिसार । नवा बछर तिहार असन नवा बछर के आय ले, मिटही सब तकलीफ । जेन चोर बदमाश हे, बनही बने शरीफ । काम बुता जब हाथ मा, होही झारा झार । नवा बछर तिहार असन चमकत हे परकाश कस, नवा बछर हा घोर । अंधियार ला मेटही, धरे हवे अंजोर ।। मन मा धर बिसवास तै, अपने काम सवार । नवा बछर तिहार असन

पटक बैरी ला हटवारा मा

अमरबेल के नार बियार, कइसन छाये तोर डारा मा । अतका कइसे तैं निरबल होगे, नाचे ओखर इसारा मा । कुकरी  मछरी होके कइसे, फसगे ओखर चारा मा । दरूहा  कोडिहा  होके कइसे, अपन पगडी बेचे पै बारा मा । दूसर के हितवार्ती होके, भाई ला बिसारे बटवारा मा । तै मनखे हस के बइला भइसा, बंधे ओखर पछवारा मा । तै छत्तीसगढ़ीया बघवा के जाये, परे मत रह कोलिहा के पारा मा । जान पहिचान अपन आप ला, अपन मुॅह देख दरपण ढारा मा । ओखर ले तैं कमतर कहां हस, पटक बैरी ला हटवारा मा ।।

छोड़व छोड़व गौटिया

छोड़व छोड़व गौटिया, बेजाकब्जा धाक। गली खोर बन कोलकी, बस्ती राखे ढाक ।। काली के गाड़ी रवन, पयडगरी हे आज । कते करे ले आय अब, घर डेहरी सुराज ।। गाड़ी मोटर फटफटी, राखय कोने ताक । छोड़व छोड़व गौटिया चरिया परिया गांव के, नदिया नरवा झार । रोवत कहरत घात हे, बेजाकब्जा टार ।। कोन बचावय आज गा, तोर गांव के नाक । छोड़व छोड़व गौटिया चवरा राखे डेहरी, सोचे ना नुकसान । का तोरे ये मान हे, का तोरे ये शान ।। चक्कर दू आंगूर के, करे गांव ला खाक । छोड़व छोड़व गौटिया,

खनक खनक के हाथ मा

खनक खनक के हाथ मा, चूऱी बोले बोल । मोर मया के राज ला, जग मा देवय खोल ।। चूरी मोरे हाथ के, हवय तोर पहिचान । रूप सजाये मोर तो, देवय कतका मान ।। खनर खनर जब बोलथे, जियरा जाथे डोल  ।।खनक खनक के हाथ मा लाली हरियर अउ पियर, रंग रंग के रंग । सबो रंग मा तो दिखय,  केवल तोरे संग ।। तोर संग ला पाय के, हाथ बने बड़ बोल ।। खनक खनक के हाथ मा

छत्तीसगढी कविता के प्रतियोगिता

"छत्तीसगढी मंच" फेसबु समूह मा छत्तीसगढी कविता के प्रतियोगिता "छत्तीसगढ के पागा" के नाम ले चलत हवय । रचना प्रेमी संगी मन ये लिंक मा जाके ये समूह के सदस्य बन के पाठक या प्रतिभागी के रूप साहित्य के सेवा कर सकत हें ।   https://www.facebook.com/photo.php?fbid=523005337852382&set=gm.1005180262833929&type=3

महिना आगे पूस के

महिना आगे पूस के, दिन भर लागय जाड़ । हाथ-पाव हा कापथे,  जइसे डोले झाड़ ।। हू हू मुॅह हा तो करय, जइसे सिसरी बोल । परे जाड़ जब पूस के, मुक्का होजय ढोल ।। महिना आगे पूस के, लेही मोर परान । ना कदरी ना गोदरी, ना परछी रेगान ।। कांटा न झिटी गांव मा, दिखे न कोनो खार । कहय डहत ये पूस हा, अब तो भूरी बार । जानय ना धनवान हा, कइसे होथे पूस । कांपत हम बिन चेंदरा, ओ पहिरे हे ठूस ।।

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