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कतका झन देखे हें-

घाम करे अतका (मदिरा सवैया)

घाम करे अतका अब तो धरती अॅंगरा कस लागय गा । हो ठुड़गा अब ठाढ़ खड़े रूखवा नॅंगरा कस लागय गा ।। बंजर  हे नदिया नरवा तरिया अउ बोर कुॅंआ नल हा।। हे तड़पे मछरी कस कूदत नाचत ये मनखे दल हा ।

कइसे भरही भेट

कइसे भरही भेट, हाथ मा हाथ धरे ले । काम बुता ला देख, मने मन तोर जरे ले । तर तर जब बोहाय, पसीना  देह म तोरे । चटनी मिरचा नून, सुहाही बासी बोरे । फुदक फुदक चिरई घला, दाना पानी खोजथे । जंगल के बघवा कहां, बइठे बइठे बोजथे ।।

छत्तीसगढ़ दाई के

छत्तीसगढ़ दाई के, परत हंन पांव ला । जेखर लुगरा छोरे, बांटे हे सुख छांव ला । पथरा कोइला हीरा, जेन भीतर मा भरे । सोंढुर अरपा पैरी, छाती मा अपने धरे ।। जिहां के रूख राई मा, बनकठ्ठी गढ़े हवे । जिहां के पुरवाही मा, मया घात घुरे हवे ।। अनपढ़ भले लागे, इहां के मनखे सबे । फेर दुलार के पोथी, ओखर दिल मा दबे ।। छत्तीसगढि़या बेटा, भुईंया के किसान हे। जांगर टोर राखे जे, ओही हमर शान हे ।।

भोगथे मोटर गाड़ी

मनखे केे अपराध, भोगथे मोटर गाड़ी । हर थाना मा देख, खड़े हे बने कबाड़ी ।। मोरो मन अभिलाष, सड़क मा घूमव फर फर । मनखे हे आजाद, कैद मा हा हँव काबर ।। कतका साधन देश के, काबर गा बरबाद हे । अंग भंग होके खड़े, खोय अपन मरजाद हे ।।

चिंता होथे देख के

चिंता होथे देख के, टूटत घर परिवार । पढ़े लिखे पति पत्नि मन, झेल सहे ना भार ।। जानय ना कर्तव्य ला, चाही बस अधिकार । बात बात मा हो अलग, मेट डरे परिवार ।। मांग भरण पोषण अलग, नोनीमन बउराय । टूरा मन हा दारू पी, अपने देह नसाय ।। राम लखन के देश मा, रावण के भरमार । गली गली मा हे भरे, सूर्पनखा हूंकार ।। कहे कहां मंदोदरी, रावण, बन तैं राम । बात नई माने कहूं, जाहूं मयके धाम ।। सूर्पनखा ला देख के, राम कहे हे बात । बसे हवय मुड़ गोड़ ले, सीता के जज्बात ।। रोठ रोठ किताब पढ़े, राम कथा ला छोड़ । अपन सुवारथ मा जिये, अपने नाता तोड़ ।।

भोमरा मा जर मरय

घाट सुन्ना बाट सुन्ना, खार सुन्ना गांव मा । झांझ झोला झेल झर झर, छांव मिलय न छांव मा ।। गाय गरूवा होय मछरी, रोय तड़पत पार मा । आदमी बेहाल होगे, घाम के ये मार मा ।। बूॅंद भर पानी नई हे, बोर नल सुख्खा परे । ओ कुॅआ अउ बावली हा, का पता कबके मरे । छोड़ मनखे गोठ तैं हर,जीव जोनी ले तरय । पेड़ रूख के जर घला हा, भोमरा मा जर मरय ।

अपन करम ला सब करव

चारे मछरी के मरे, तरिया हा बस्साय । बने बने भीतर हवय, बात कोन पतियाय ।। सच ठाढ़े अपने ठउर, घूमय झूठ हजार । सच हा सच होथे सदा, झूठ सकय ना मार ।। बुरा बुरा तैं सोचथस, बुरा बुरा ला देख । बने घला तो हे इहां, खोजे मा अनलेख ।। अपन करम ला सब करव, देखव मत मिनमेख । देखे मा गलती दिखय, तोरे मा अनलेख ।। जइसे होथे सोच हा, तइसे होथे काम । स्वाभिमान राखे रहव, होही तोरे नाम ।।

कहत हे पानी टपकत

टपकत पानी बूंद ला, पी ले तैं खोल । टपकत पानी बूंद हा, खोलत हावे पोल । खोलत हावे पोल, नदानी हमरे मन के । नरवा नदिया छेक, बसे हे मनखे तन के ।। पाटे कुॅवा तलाब, बोर खनवाये मटकत । सुख्खा होगे बोर, कहत हे पानी टपकत ।।

आंखी होथे तीन ठन

श्रद्धा अउ विश्वास हा, आथे अपने आप । कथरी ओढ़े घीव पी, राम नाम ला जाप ।। गलती ले जे सीखथे, अनुभव ओखर नाम । जीवन के पटपर डगर, आथे वोही काम ।। उल्टा तोरे सोच के, दिखय कहू गा बात । गुस्सा मन मा फूटथे, लाई कस दिन रात ।। एक होय ना मत कभू, जुरे चार विद्वान । अपन अपन के तर्क ले, बनथे खुदे महान ।। एक करे बर सोच ला, सुने ल परथे गोठ । सुन दूसर के गोठ ला, मनखे होथे पोठ ।। दवा क्रोध के एक हे, सहनशील मन होय । क्षमा दान ला मान दै, शांति जगत मा बोय ।। दिखय नही चेथी अपन, करलव लाख उपाय । गलती चेदी मा बसय, कइसे लेब नसाय । देखे बर मुॅह ला अपन, दर्पण चाही एक । अपने चारी जे सुनय, बन जाथे ओ नेक ।। कहिना कोनो बात ला, घात सहज मन मोय । काम करे बर कोखरो, जांगर नई तो होय ।। आंखी होथे तीन ठन, दू जग ला देखाय । तीसर आंखी मन हवय, अपने देह जनाय ।।

नाम ओखर हे ममता

ममता चंद्राकरजी ला पद्मश्री से सम्मानित होय बर गाड़ा-गाड़ बधाई - ममता दी के मान ले, माथा ऊंचा होय । छत्तीसगढ़ी बर इहां, जेने मही बिलोय ।। जेने मही बिलोय, घीव ला बांटे घर-घर । लता कोयली होय, गीत ला गाये झर-झर ।। छत्तीसगढ़ी आन, रखे हे अपने क्षमता । जेन हमर पहिचान, नाम ओखर हे ममता । -रमेश चौहान

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