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संदेश

कतका झन देखे हें-

पढ़े काबर चार आखर,

रूपमाला छंद पढ़े काबर चार आखर, इहां सोचे कोन । डालडा के बने गहना, होय चांदी सोन ।। पेट पूजा करे भर हे, बने ज्ञानी पोठ । सबो पढ़ लिख नई जाने, गाँव के कुछु गोठ ।। मोर लइका मोर बीबी, मोर ये घर द्वार । छोड़ दाई ददा भाई, करे हे अत्याचार ।। सोंध माटी नई जाने, डगर के चिखला देख । पढ़े अइसन दिखे ओला, गांव मा मिन मेख । ज्ञान दीया कहाथे जब, कहां हे अंजोर । नौकरी बर लगे लाइन, अपन गठरी जोर ।।

गांव

मधुमालती छंद सुन गोठ ला, ये धाम के। पहिचान हे, जे काम के हम आन के, खाये सुता । धर खांध ला, करथन बुता छोटे बड़े, देथे मया । सब आदमी,  करथे दया सुख आन के, मन मा धरे । दुख आन के, सब झन भरे काकी कका, भइया कहे । दाई बबा, सब बर सहे हर बात ला, सब मानथे । सब नीत ला, भल जानथे चल खेत मा, हँसिया धरे । हे धान मा, निंदा भरे दाई कहे, चल बेटवा ।  मत घूम तै, बन लेठवा ये देष के, बड़ शान हे । जेखर इहां तो मान हे जेला कहे, सब गांव हे । जे स्वर्ग ले निक ठांव हे

//मुक्तक//

सीखव सीखव बने सीखव साँव चेत होय । आशा पैदा करव खातूहार खेत होय ।। बदरा बदरा निमारव छाँट बीज भात पानी बादर सहव संगी नदी रेत होय ।। -रमेश चौहान

कतका दिन ले सहिबो

जे चोरी लुका करय, अड़बड़ घात । अइसन बैरी ला अब, मारव लात ।। कतका दिन ले सहिबो, अइसन बात । कब तक बिरबिट करिया, रहिही रात ।। नई भुलाये हन हम, पठान कोट । फेर उरी मा कइसे, होगे चोट ।। बीस मार के बैरी, मरथे एक । अब तो बैरी के सब, रद्दा छेक । कठपुतली के डोरी, काखर हाथ । कोन-कोन देवत हे, उनखर साथ ।। छोलव चाचव अब तो , कचरा कांद । बैरी हा घुसरे हे, जेने मांद ।।

//भ्रष्टाचार// (नवगीत)

घुना किरा जइसे कठवा के भ्रष्टाचार धसे हे लालच हा अजगर असन मनखे मन ला लिलत हे ठाठ-बाट के लत लगे दारू-मंद कस पियत हे पइसा पइसा मनखे चिहरय जइसे भूत कसे हे दफ्तर दफ्तर काम बर टेक्स लगे हे एक ठन खास आम के ये चलन बुरा लगय ना एक कन हमर देश के ताना बाना हा  अपने जाल फसे हे रक्तबीज राक्षस असन सिरजाथे रक्सा नवा चारो कोती हे लमे जइसे बगरे हे हवा अपन हाथ मा खप्पर धर के अबतक कोन धसे हे ।

प्रभु ला हस बिसराये

चवपैया छंद काबर तैं संगी, करत मतंगी, प्रभु ला हस बिसराये। ये तोरे काया, प्रभु के दाया, ओही ला भरमाये ।। धर मनखे चोला, कइसे भोला, होगे खुद बड़ ज्ञानी । तैं दुनिया दारी, करथस भारी, जीयत भर मन मानी ।। रमेश चौहान

कहस अपन ला मनखे तैं हा

तोर करेजा पथरा होगे । जागे जागे कइसे सोगे । आँखी आघू कुहरा छागे अपन सुवारथ आघू आगे कहस अपन ला मनखे तैं हा तोरे सेती दूसर भोगे । बेजा कब्जा घात करे हस जगह जगह मा मात करे हस खोर-गली अउ तरिया परिया जेती देखव एके रोगे । पर के बांटा अपने माने फोकट बर तैं पसर ल ताने एको लाज न तोला आवय ये गौटिया भिखारी होगे ।

छत्तीसगढ़ी नवगीत: नाचत हे परिया

(नवगीत म पहिली प्रयास) नाचत हे परिया गावत तरिया घर कुरिया ला, देख बड़े । सुन्ना गोदी अब भरे दिखे आदमी पोठ अब सब झंझट टूट गे सुन के गुरतुर गोठ सब नरवा सगरी अउ पयडगरी सड़क शहर के, माथ जड़े । सोन मितानी हे बदे, करिया लोहा संग कांदी कचरा घाट हा देखत हे हो दंग चौरा नंदागे, पार हरागे बइला गाड़ी, टूट खड़े । छितका कोठा गाय के पथरा कस भगवान पैरा भूसा ले उचक खाय खेत के धान नाचे हे मनखे बहुते तनके खटिया डारे, पाँव खड़े ।।

ये बरखा रानी विनती सुनलव

ये बरखा रानी, सुनव कहानी, मोर जुबानी, ध्यान धरे । तोरे बिन मनखे, रहय न तनके, खाय न मनके, भूख मरे ।। बड़ चिंता करथें, सोच म मरथे, देखत जरथे, खेत जरे । कइसे के जीबो, काला पीबो, बूंद न एको, तोर परे ।। थोकिन तो गुनलव, विनती सुनलव, बरसव रद्-रद्, एक घड़ी । मानव तुम कहना, फाटे धनहा, खेत खार के, जोड़ कड़ी ।। तरिया हे सुख्खा, बोर ह दुच्छा, बूंद-बूंद ना, हाथ धरे । सुन बरखा दाई, करव सहाई, तोर बिना सब, जीव मरे ।।

भौजी

ये सुक्सा भाजी, खाहव काजी, पूछय भौजी, साग धरे  । ओ रांधत जेवन, खेवन-खेवन, डारत फोरन, मात करे ।। ओखर तो रांधे, सबो ल बांधे, मया म फांदे, जोर मया । जब दाई खावय, हाँस बतावय, बहुत सुहावय, देत दया ।

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