कोने ढिंढोरा पिटत हवय, जात पात हा होगे एक । हमर हमर चिल्लावत हावे, कट्टर होके मनखे नेक ।। एक लाभ बर जात बताये, दूसर बर ओ जात लुकाय । बिन पेंदी के लोटा जइसे, ढुलमूल ढुलमुल ढुलगत जाय ।। दू धारी तलवार धरे हे, हमर देश के हर सरकार । जात पात छोड़व कहि कहि के, खुद राखे हे छांट निमार ।। खाना-पीना एके होगे, टूरा-टूरी घला ह एक । काबर ठाड़े हावे भिथिया, जात-पात के अबले झेक । सबले आघू जेन खड़े हे, कइसे पिछड़ा नाम धराय । सब ला जेन दबावत हावे, काबर आजे दलित कहाय ।। जे पाछू मा दबे परे हे, हर मनखे ला रखव सरेख । मनखे मनखे एके होथे, जात पात ला तैं झन देख ।। काम -धाम जेखर मेरा हे, जग मा होथे ओखर नाम । जेन हवे जरूरत के मनखे, सबला देवव संगी काम ।।
पुस्तक: मानसिक शक्ति-स्वामी शिवानंद
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मानसिक शक्ति THOUGHT POWER का अविकल रूपान्तर लेखक श्री स्वामी शिवानन्द
सरस्वती
3 माह पहले