हमर ममा गांव मा, होवत हे गा बिहाव । दाई अऊ बाई दुनो, कहत हे जाबो गांव ।। दाई कहे बाबू सुन, मोर ममा के नाती के । घात सुघ्घर आदत, का तोला बतांव ।। वो ही बाबू के बिहाव, होवत हे ग ना आज । मुंह झुंझूल ले जाबो, बाढ़ गे हे तांव ।। तोर सारी दुलौरीन, मोर ममा के ओ नोनी । घेरी घेरी फोन करे, भेजे मया ले बुलांव ।। मोटरा जोर मैं हर, करत हंव श्रृंगार । काल संझकेरहे ले, जाबो जोही ममा गांव ।। सियानीन मोटियारी, टूरा होवय के टूरी । सब्बो ला घाते भाथे, अपनेच ममा गांव ।। एके तारीक म हवे, दुनो कोती के बिहाव । सोच मा परे हवंव, काखर संग मैं जांव ।। दाई संग जाहूं मै ता, बाई ह बड़ रिसाही । गाल मुंह ल फुलेय, करही गा चांव चांव ।। बाई संग कहूं जाहूं, दाई रो रो देही गारी । ये टूरा रोगहा मन, डौकीच ला देथे भाव ।। बड़ मुश्किल हे यार, सुझत नई ये कुछु । काखर संग मैं जांव, काला का कहि मनांव ।। नानपन ले दाई के, घात मया पाय हंव । मन ले कहत हंव, दाई जिनगी के छांव ।। अब तो सुवारी बीना, जिनगी लागे बेमोल । जोही बीना जग सुन्ना, लगे जिनगी के दांव ।। छोड़ नई सकव मैं, दाई बाई दुनो ला तो । बि...
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
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मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
1 हफ़्ते पहले