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दिसंबर, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

साल नवा

नवा सोच के नवा साल के बधाई (दुर्मिल सवैया) मनखे मनखे मन खोजत हे,  दिन रात खुशी अपने मन के । कुछु कारण आवय तो अइसे, दुख मेटय जेन ह ये तन के । सब झंझट छोड़ मनावव गा, मिलके  कुछु कांहि तिहार नवा । मन मा भर के सुख के सपना,  सब कोइ मनावव साल नवा ।। -रमेश चौहान

सबला देवव संगी काम

कोने ढिंढोरा पिटत हवय, जात पात हा होगे एक । हमर हमर चिल्लावत हावे, कट्टर होके मनखे नेक ।। एक लाभ बर जात बताये, दूसर बर ओ जात लुकाय । बिन पेंदी के लोटा जइसे, ढुलमूल ढुलमुल ढुलगत जाय ।। दू धारी तलवार धरे हे, हमर देश के हर सरकार । जात पात छोड़व कहि कहि के, खुद राखे हे छांट निमार ।। खाना-पीना एके होगे, टूरा-टूरी घला ह एक । काबर ठाड़े हावे भिथिया, जात-पात के अबले झेक । सबले आघू जेन खड़े हे, कइसे पिछड़ा नाम धराय । सब ला जेन दबावत हावे, काबर आजे दलित कहाय ।। जे पाछू मा दबे परे हे, हर मनखे ला रखव सरेख । मनखे मनखे एके होथे, जात पात ला तैं झन देख ।। काम -धाम जेखर मेरा हे, जग मा होथे ओखर नाम । जेन हवे जरूरत के मनखे,  सबला देवव संगी काम ।।

तोर गुस्सा

तोर गुस्सा तोर आगी, करय तोला खाक । तोर मन हा बरत रहिही, देह होही राख ।। सोच संगी फायदा का, आन के अउ तोर । हाथ दूनो रोज उलचव,  मया मन मा जोर ।। -रमेश चौहान

मया के सुरता

उत्ती के बेरा जइसे सुरता तोरे जागे हे मन के पसरे बादर म सोना कस चमकत हे मोरे काया के धरती म अंग-अंग चहकत हे दरस-परस के सपना मा डेना-पांखी लागे हे सुरता के खरे मझनिया देह लकलक ले तिपे हे अंतस के धीर अटावत मया तोरे लिपे हे अंग-अंग म अगन लगे काया म मन छागे हे तोर हंसी के पुरवाही सुरता म जब बोहाय आँखी के बोली बतरस संझा जइसे जनाय आँखी म आँखी के समाये आँखी म रतिहा आगे हे

सुरूज के किरण संग मन के रेस लगे हे

सुरूज के किरण संग मन के रेस लगे हे छिन मा तोला छिन मा मासा नाना रूप धरे हे काया पिंजरा के मैना हा पिंजरा म कहां परे हे करिया गोरिया सब ला मन बैरी हा ठगे हे सरग-नरक ल छिन मा लमरय सुते-सुते खटिया मा झरर-झरर बरय बुतावय जइसे भूरी रहेटिया मा माया के धुन्धरा म लगथे मन आत्मा हा सगे हे मन के जीते जीत हे हारही कइसे मन ह रात सुरूज दिखय नही हरहिंछा घूमय मन ह ‘मैं‘ जानय न अंतर मन म अइसन पगे हे

बिहनिया के राम-राम

आज के बिहनिया सुग्घर, कहत हंव जय राम । बने तन मन रहय तोरे, बने तोरे काम । मया तोला पठोवत हंव, अपन गोठ म घोर । मया मोला घला चाही,  संगवारी तोर ।

हमर देश कइसन

हमर देश कइसन, सागर जइसन, सबो धरम मिलय जिहां । सुरूज असन बनके, मनखे तन के, गुण-अवगुण लिलय इहां । पर्वत कस ठाढ़े, जगह म माढ़े, गर्रा पानी सहिके । आक्रमणकारी, हमर दुवारी, रहिगे हमरे रहिके ।।

गाँव के हवा

रूसे धतुरा के रस गाँव के हवा म घुरे हे ओखर माथा फूट गे बेजाकब्जा के चक्कर मा येखर खेत-खार बेचागे दूसर के टक्कर मा एक-दूसर ल देख-देख अपने अपन म चुरे हे एको रेंगान पैठा मा कुकुर तक नई बइठय बिलई ल देख-देख मुसवा कइसन अइठय पैठा रेंगान सबके अपने कुरिया म बुड़े हे गाँव के पंच परमेश्वर कोंदा-बवुरा भैरा होगे राजनीति के रंग चढ़े ले रूख-राई ह घला भोगे न्याय हे कथा-कहिनी हकिकत म कहां फुरे हे

//छत्तीसगढ़ी माहिया//

तोर मया ला पाके मोर करेजा मा धड़कन  फेरे जागे तोर बिना रे जोही सुन्ना हे अँगना जिनगी के का होही देत मिले बर किरया मन मा तैं बइठे तैं हस कहां दूरिहा जिनगी के हर दुख मा ये मन ह थिराथे तोर मया के रूख मा सपना देखय आँखी तीर म मन मोरे जावंव खोले पाँखी

जब काल ह हाथ म बाण धरे

दुर्मिल सवैया जब काल ह हाथ म बाण धरे, त जवान सियान कहां गुनथे । झन झूमव शान गुमान म रे, सब राग म ओ अपने सुनथे ।। करलै कतको झगरा लड़ई, चिटको कुछु काम कहां बनथे । मन मूरख सोच भला अब तैं, फँस काल म कोन भला बचथे ।

अब तो हाथ हे तोरे

लिमवा कर या कर दे अमुवा अब तो हाथ हे तोरे मोर तन तमुरा, तैं तार तमुरा के करेजा मा धरे हंव मया‘, फर धतुरा के अपने नाम ल जपत रहिथव राधा-श्याम ला घोरे मोर मन के आशा विश्वास तोर मन के अमरबेल होगे पीयर-पीयर मोर मन अउ पीयर-पीयर मोर तन होगे मोर मया के आगी दधकत हे तोर मया ला जोरे तोर बहिया लहरावत हे जस नदिया के लहरा मछरी कस इतरावत हंव मैं, तोर मया के दहरा तोर देह के छाँव बन के मैं रेंगंव कोरे-कोरे

मोर दूसर ब्लॉग