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नवंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

करम बड़े के भाग

फांदा मा चिरई फसे, काखर हावे दोष । भूख मिटाये के करम, या किस्मत के रोष ।। या किस्मत के रोष, काल बनके हे आये । करम बड़े के भाग, समझ मोला कुछु ना आये ।। सोचत हवे ‘रमेश‘, अरझ दुनिया के थांघा । काखर हावे दोष, फसे चिरई हा फांदा ।।

पहा जथे हर रात, पहाती बेरा देखत

देखत कारी रात ला, मन मा आथे सोच । कुलुप अंधियारी हवय, खाही हमला नोच । खाही हमला नोच, हमन बाचन नहिं अब रे । पता नही भगवान, रात ये कटही कब रे ।। धर ले गोठ ‘रमेश‘, अपन मन ला तैं सेकत । पहा जथे हर रात, पहाती बेरा देखत ।

लंबा लबरा जीभ

खाये भर बर तो हस नही, लंबा लबरा जीभ । बोली बतरस मा घला, गुरतुर-गुरतुर नीभ ।। गुरतुर-गुरतुर नीभ, स्वाद दूनों तैं जाने । करू-करू के मीठ,  बने कोने ला तैं माने ।। पूछत हवय ‘रमेश‘,  मजा कामा तैं पाये । गुरतुर बोली छोड़, मीठ कतका तैं खाये ।।

आंगा-भारू लागथे

आंगा-भारू लागथे, हमरे देश समाज । समझ नई आवय कुछुच, का हे येखर राज ।। का हे येखर राज, भरे के अउ भरते हे । दुच्छा वाले आज, झरे ऊँपर झरते हे ।। सोचत हवे ‘रमेश‘, जगत हे गंगा बारू । माने मा हे देव, नहीं ता आंगा-भारू ।।

करम तोर पहिचान हे

अपने ला पहिचान, देह हस के तैं आत्मा । पाँच तत्व के देह, जेखरे होथे खात्मा ।। देह तत्व ले आन, अमर आत्मा हा होथे । करे देह ला यंत्र, करम फल ला वो बोथे ।। रंग-रूप ला छोड़ के, करम तोर पहिचान हे । मनखेपन ला मान,  तोर येही अभिमान हे ।।

बरवै छंद

1. हमर गाँव के धरती, सबले पोठ । गुरतुर भाखा बोली, गुरतुर गोठ ।। 2. तुँहर पेट ला भरथे, हमर किसान । मन ले कर लौ संगी, ओखर मान ।। 3. झूठ लबारी के हे, दिन तो चार । सत के सत्ता होथे, बरस हजार ।। 4. सत के रद्दा मा तो  हे भगवान । मोर गोठ ला संगी, सिरतुन जान ।। 5.जइसन बीजा होथे, तइसन झाड़ । सोच-समझ के संगी,  रद्दा बाढ़ ।। 6. सुख-दुख हा तो होथे, जस दिन रात । एक-एक कर आथे, सिरतुन बात ।। 7. धरम करम मा बड़का, होथे कोन । करम धरम ला गढ़थे, होके मोन ।। 8. बेजाकब्जा छाये, जम्मो गाँव । तोपा गे रूख-राई, बर के छाँव ।। 9.शिक्षा मा तो चाही, अब संस्कार । तब ना तो मिटही गा, भ्रष्टाचार ।। 10 घुसखोरी ले बड़का, भ्रष्टाचार । येला छोड़े बर तो, देश लचार ।

ये गांव ए (मधुमालती छंद)

सुन गोठ ला, ये गांव के। ये देश के, आें ठांव के जे देश के, अभिमान हे । संस्कार के पहिचान हे परिवार कस, सब संग मा, हर बात मा, हर रंग मा बड़ छोट सब, हा एक हे । हर आदमी, बड़ नेक हे दुख आन के, जब देखथें । निज जान के, सब भोगथे जब देखथे, सुख आन के । तब नाचथे, ओ तान के हर रीत ला, सब जानथें । मिल संग मा, सब मानथें हर पर्व के, हर ढंग ला । रग राखथे, हर रंग ला ओ खेत मा, अउ खार मा । ओ मेढ़ मा, अउ पार मा बस काम ला, ओ जानथे । भगवान कस, तो मानथे संबंध ला, सब बांध के । अउ प्रीत ला, तो छांद के निक बात ला, सब मानथे । सब नीत ला, भल जानथे चल खेत मा, ये बेटवा । मत घूम तैं, बन लेठवा कह बाप हा, धर हाथ ला । तैं छोड़ झन, गा साथ ला ये देश के, बड़ शान हे । जेखर इहां तो मान हे ये गांव ए, ये गांव ए । ए स्वर्ग ले, निक ठांव ए

हे काम पूजा

तैं बात सुन्ना । अउ बने गुन्ना जी भर कमाना । भर पेट खाना ये पूट पूजा । ना करे दूजा जीनगी जीबे । जब काम पीबे बिन काम जोही । का तोर होही हे पेट खाली । ना बजे ताली ये एक बीता । हे रोज रीता तैं भरे पाबे । जब तैं कमाबे परिवार ठाढ़े । अउ बुता बाढ़े ना हाथ पैसा । परिवार कैसा जब जनम पाये । दूधे अघाये जब गोड़ पाये । तब ददा लाये खाई खजेना । तैं हाथ लेना लइका कहाये । खेले भुलाये ना कभू सोचे । कुछु बात खोचे काखर भरोसा । पांचे परोसा आये जवानी । धरके कहानी अब काम खोजे । दिन रात रोजे पर के सपेटा । खाये चपेटा तैं तभे जाने । अउ बने माने संसार होथे । दुख दरद बोथे जब हाथ कामे । तब होय नामे तैं बुता पाये । दुनिया बसाये दिन रात फेरे । जांगर ल पेरे ये पेट सेती । तैं करे खेती प्रिवार पोसे । बिन भाग कोसे बस बुता कामे । कर हाथ ताने जब काम होथे । सब मया बोथे बेरा पहागे । जांगर सिरागे डोकरा खॉसे । छोकरा हॉसे

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