1. हमर गाँव के धरती, सबले पोठ ।
गुरतुर भाखा बोली, गुरतुर गोठ ।।
2. तुँहर पेट ला भरथे, हमर किसान ।
मन ले कर लौ संगी, ओखर मान ।।
3. झूठ लबारी के हे, दिन तो चार ।
सत के सत्ता होथे, बरस हजार ।।
4. सत के रद्दा मा तो हे भगवान ।
मोर गोठ ला संगी, सिरतुन जान ।।
5.जइसन बीजा होथे, तइसन झाड़ ।
सोच-समझ के संगी, रद्दा बाढ़ ।।
6. सुख-दुख हा तो होथे, जस दिन रात ।
एक-एक कर आथे, सिरतुन बात ।।
7. धरम करम मा बड़का, होथे कोन ।
करम धरम ला गढ़थे, होके मोन ।।
8. बेजाकब्जा छाये, जम्मो गाँव ।
तोपा गे रूख-राई, बर के छाँव ।।
9.शिक्षा मा तो चाही, अब संस्कार ।
तब ना तो मिटही गा, भ्रष्टाचार ।।
10 घुसखोरी ले बड़का, भ्रष्टाचार ।
येला छोड़े बर तो, देश लचार ।
गुरतुर भाखा बोली, गुरतुर गोठ ।।
2. तुँहर पेट ला भरथे, हमर किसान ।
मन ले कर लौ संगी, ओखर मान ।।
3. झूठ लबारी के हे, दिन तो चार ।
सत के सत्ता होथे, बरस हजार ।।
4. सत के रद्दा मा तो हे भगवान ।
मोर गोठ ला संगी, सिरतुन जान ।।
5.जइसन बीजा होथे, तइसन झाड़ ।
सोच-समझ के संगी, रद्दा बाढ़ ।।
6. सुख-दुख हा तो होथे, जस दिन रात ।
एक-एक कर आथे, सिरतुन बात ।।
7. धरम करम मा बड़का, होथे कोन ।
करम धरम ला गढ़थे, होके मोन ।।
8. बेजाकब्जा छाये, जम्मो गाँव ।
तोपा गे रूख-राई, बर के छाँव ।।
9.शिक्षा मा तो चाही, अब संस्कार ।
तब ना तो मिटही गा, भ्रष्टाचार ।।
10 घुसखोरी ले बड़का, भ्रष्टाचार ।
येला छोड़े बर तो, देश लचार ।
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