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संदेश

कतका झन देखे हें-

-ददरिया-

हाथ धरे पर्स, पर्स म मोबाइल चुपे चाप बोल ले, कर के स्माइल मोर करेजा मोर करेजा  उबुक-चुबुक तोला जोहे तोला जोहे करेजा करे बर संगी संगी मोर होइ जाबे ना टाठ-टाठ जिंस पेंट, टाठे हे कुरता तोर झूल-झूल रेंगना के आवत हे सुरता मोर करेजा मोर करेजा  उबुक-चुबुक तोला जोहे तोला जोहे करेजा करे बर संगी संगी मोर होइ जाबे ना चढ़े स्कूटी, तै गली घूमे नजर भेर देख, अपन हाथे चूमे मोर करेजा मोर करेजा  उबुक-चुबुक तोला जोहे तोला जोहे करेजा करे बर संगी संगी मोर होइ जाबे ना कोहनी ले मेंहदी, अंगठा म छल्ला गजब के सोहत हे, सब करे हल्ला मोर करेजा मोर करेजा  उबुक-चुबुक तोला जोहे तोला जोहे करेजा करे बर संगी संगी मोर होइ जाबे ना एके गोड़ म पहिरे, रेशम के डोरी सुटुर-सुटुर रेंगे, करके दिल ल चोरी मोर करेजा मोर करेजा  उबुक-चुबुक तोला जोहे तोला जोहे करेजा करे बर संगी संगी मोर होइ जाबे ना

कहमुकरिया

1. अपन बाँह मा भरथंव जेला । जेन खुशी बड़ देथे मोला ।। मन हरियर तन लाली भूरी । का सखि ? भाटो ! नहि रे चूरी ।। 2. बिन ओखर जेवन नई चुरय । सांय-सांय घर कुरिया घुरय ।। जेन कहाथे घर के दूल्हा । का सखि ? भाटो ! नहि रे, चूल्हा ।। 3. दुनिया दारी जेन बताथे । रिगबिग ले आँखी देखाथे । जेखर आघू बइठवं ‘सीवी‘ का सखि ? भाटो ! नहि रे, टीवी ।।

मैं तो बेटी के बाप

//नवगीत// दुख के हाथी मुड़ मा बइठे कइसे बिताववं रात टुकुर-टुकुर बादर ला देखत ढलगे हवं चुपचाप न रोग-राई हे न प्रेम रोग हे मैं तो बेटी के बाप कोन सुनही काला सुनावंव अपन मन के बात जतका मोरे चद्दर रहिस हे ततका पांव मारेंव चिरई कस चुन-चुन दाना ओखर मुह मा डारेंव बेटी-बेटा एक मान के पढाय लिखाय हंव घात कइसे कहंव अपन पीरा ल मिलय न लइका अइसे पढ़े-लिखे गुणवान होय मोरे नोनी हे जइसे पढ़ई-लिखई छोड़-छोड़ के टुरा दारू म गे मात जांवर-जीयर बिन बिरथा हे नोनी के बुता काम दूनो चक्का एक होय म चलथे गाड़ी तमाम आंगा-भारू कइसे फांदवं लाके कोनो बरात टूरा अउ टूरा के ददा थोकिन गुनव सोचव पढ़ई लिखई पूरा करके काम बुता सरीखव नोनी बाबू एक बरोबर बाढ़त रहल दिन रात -रमेश चौहान

बनय जोड़ी हा कइसे

कइसे मैं हर करव, बेटी के ग बिहाव । बेटी जइसे छोकरा, खोजे ल कहां जांव । खोजे ल कहां जांव, कहूं ना बने दिखे गा । दिखय न हमर समाज, छोकरा पढ़े लिखे गा । नोनी बी. ई. पास, मिलय ना टूरा अइसे । टूरा बारा पास, बनय जोड़ी हा कइसे ।।

संगवारी

सुख दुख के तही संगवारी । तोर मया बर मै बलिहारी ।। मोर संग तै देवत रहिबे । मोर भूल चूक सहत रहिबे । पाठ मितानी के धरे रहब । काम एक दूसर करत रहब ।। तोर सबो पीरा मोरे हे । मोर सबो पीरा तोरे हे ।। बिन तोरे ये जीनगी दुभर । बिन संगी हम जीबो काबर ।। तोर मया जीनगी ल गढ़थे । मोला देखत तोला पढ़थे ।। -रमेश चौहान

मनखे के धरम

मनमोहन छंद मनखे के हे, एक धरम । मनखे बर सब, करय करम मनखे के पहिचान बनय । मनखेपन बर, सबो तनय दूसर के दुख दरद हरय । ओखर मुड़ मा, सुख ल भरय सुख के रद्दा, अपन गढ़य । भव सागर ला पार करय मनखे तन हे, बड़ दुरलभ । मनखे मनखे गोठ धरब करम सार हे, नषवर जग । मनखे, मनखे ला झन ठग जेन ह जइसन, करम करय । तइसन ओखर, भाग भरय सुख के बीजा म सुख फरय । दुख के बीजा ह दुख भरय मनखे तन ला राम धरय । मनखे मन बर, चरित करय सब रिश्ता के काम करय । दूसर के सब, पीर हरय -रमेश चौहान

मया

कुची हथौड़ा के किस्सा । मनखे मन के हे हिस्सा हथौड़ा ह ताकत जोरय । कुचर-कुचर तारा टोरय  । अतकी जड़ कुची ह रहिथे । मया म तारा ले कहिथे मया मोर अंतस धर ले  ।  अपने कोरा मा भर ले जब तारा-चाबी मिलथे । मया म तारा हा खुलथे एक ह जोड़े ला जानय । दूसर टोरे मा मानय लहर-लहर झाड़ी डोले ।  जब आंधी हा मुँह खोले रूखवा ठाड़े गिर परथे । अकड़न-जकड़न हा मरथे

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