सस्ता मा समान बेच, लालच देखावत हे, हम बिसावत हन के, हमला बिसावत हे । धरे हन मोबाइल, चाइना हम हाथ मा, ओही मोबाइल बीच, चीन डेरूवावत हे । बात-बात मा चाइना, हर काम मा चाइना सस्ता के ये चक्कर ह, चक्कर बनावत हे । सस्ता के ये चक्कर म, अपनेे ला झन बेच अपनो ल देख संगी, तोला ओ बिगाड़त हे ।
आलेख: ‘बदलते समाज में साहित्य की भूमिका: दर्पण से दिशा-सूचक तक’-रमेश चौहान
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प्रस्तावना: साहित्य – जीवन का शाश्वत संवाद साहित्य, मानव सभ्यता के साथ
विकसित हुआ एक शाश्वत संवाद है। इसे प्रायः “समाज का दर्पण” कहा जाता है,
क्योंकि यह अप...
2 दिन पहले