भीतरे भीतर जरव मत (तुकांत गज़ल) भीतरे भीतर जरव मत बिन आगी के बरव मत अपन काम ले काम जरूरी फेर बीमरहा कस घर धरव मत जेला जे पूछय तेला ते पूछव राम-राम कहे बिन कोनो टरव मत चार दिन के जिंदगी चारठन गोठ चार बरतन के ठेस लगे लडव मत काना-फुँसी कानों कान होथे दूसर के कान ला भरव मत आँखी के देखे धोखा हो सकथे अंतस के आँखी बंद करव मत -रमेश चौहान
संवेदनशील और सशक्त साहित्यकार:जयन्त कुमार थोरात- डुमन लाल ध्रुव
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छत्तीसगढ़ की धरती साहित्य, संस्कृति और वीरता की परंपरा में अद्वितीय रही है।
इसी माटी ने ऐसे अनेक प्रतिभाशाली व्यक्तित्वों को जन्म दिया है जिन्होंने
अपने कर...
9 घंटे पहले