गावत हे फाग रे (घनाक्षरी छंद) आमा मउराये जब, बउराये परसा हा, भवरा हा मंडरा के, गावत हे फाग रे । झुमर-झुमर झूमे, चुमे गहुदे डारा ल, महर-महर करे, फूल के पराग रे ।। तन ला गुदगुदाये, अउ लुभाये मन ला हिरदय म जागे हे, प्रीत अनुराग रे । ओ चिरई-चिरगुन, रूख-राई संग मिल, छेड़े हावे गुरतुर, मादर के राग रे ।। -रमेश चौहान
एक लघु आलेख:अब युद्ध क्यों होते हैं? – डॉ. अर्जुन दूबे
-
त्रेता युग में रचा गया राम-रावण युद्ध भारतीय इतिहास की उस पहली महान कथा का
रूप ले चुका है, जिसमें धर्म और अधर्म के बीच की रेखा स्पष्ट खींच दी…
1 हफ़्ते पहले