नीति के दोहा करना धरना कुछ नहीं, काँव-काँव चिल्लाय । खिंचे दूसर के पाँव ला, हक भर अपन जताय ।। अपन काम सहि काम नहीं, नाम जेखरे कर्म । छोड़ बात अधिकार के, काम करब हे धर्म ।। कहां कोन छोटे बड़े, सबके अपने मान । अपन हाथ के काम बिन, फोकट हे सब ज्ञान ।। जीये बर तैं काम कर, कामे बर मत जीय । पइसा ले तो हे बडे, अपन मया अउ हीय ।। ए हक अउ अधिकार मा, कोन बड़े हे देख । जान बचावब मारना, अइसन बात सरेख ।। -रमेश चौहान
डुमन लाल ध्रुव की दो कवितायें
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जनजातीय गौरव पहाड़ की छाया मेंएक आदमी खड़ा हैउसके पैरों में जूते नहींपर
जमीन उसे पहचानती है।वह जंगल से बात करता हैबिना भाषा बदलेपेड़ उसकी चुप्पी को
समझते ह...
10 घंटे पहले