तोर-मोर माया घोर हे, न ओर हे ना छोर । तोर ह तो तोरे हवय, अउ मोरे हा मोर ।। कोनो ला माने अपन, हो जाही ओ तोर। घर के खपरा ला घला, कहिथस तैं हा मोर ।। मोर कहे मा मोर हे, तोर कहे मा तोर। मया मोर मा हे घुरे, तोर कहे ला छोर।। ना जान न पहिचान हे, तब तक तैं अनजान। माने तैं ओला अपन, होगे तोर परान ।। माने मा पथरा घला, हवय देवता तोर । लकड़ी के खम्भा घला, हवय देवता मोर ।। मन के माने मान ले, माने मा सब तोर । तोर-मोर ला छोड़ के, कहि ना सब ला मोर ।।
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
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मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
4 हफ़्ते पहले