श्रद्धा अउ विश्वास हा, आथे अपने आप । कथरी ओढ़े घीव पी, राम नाम ला जाप ।। गलती ले जे सीखथे, अनुभव ओखर नाम । जीवन के पटपर डगर, आथे वोही काम ।। उल्टा तोरे सोच के, दिखय कहू गा बात । गुस्सा मन मा फूटथे, लाई कस दिन रात ।। एक होय ना मत कभू, जुरे चार विद्वान । अपन अपन के तर्क ले, बनथे खुदे महान ।। एक करे बर सोच ला, सुने ल परथे गोठ । सुन दूसर के गोठ ला, मनखे होथे पोठ ।। दवा क्रोध के एक हे, सहनशील मन होय । क्षमा दान ला मान दै, शांति जगत मा बोय ।। दिखय नही चेथी अपन, करलव लाख उपाय । गलती चेदी मा बसय, कइसे लेब नसाय । देखे बर मुॅह ला अपन, दर्पण चाही एक । अपने चारी जे सुनय, बन जाथे ओ नेक ।। कहिना कोनो बात ला, घात सहज मन मोय । काम करे बर कोखरो, जांगर नई तो होय ।। आंखी होथे तीन ठन, दू जग ला देखाय । तीसर आंखी मन हवय, अपने देह जनाय ।।
“बाबा विश्वैश्वर नाथ की महिमा”-अर्जुन दूबे
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(उपरोक्तत आलेख मान्यता के आधार पर मेरे गांव के गाँव के ब्रह्मलीन बाबा
विश्वैश्वर नाथ के प्रति सम्मान सहित संस्मरण है।-प्रोफेसर अर्जुन दूबे) मैं
जिसकी महिमा...
2 हफ़्ते पहले