दाई के गोरस असन, छत्तीसगढी बोल ।
तोर मोर रग मा भरे, देखव ऑखी खोल ।।
हमरे भाखा मा घुरे, दया मया भरपूर ।
मनखे मनखे मन रहय, मनखेपन मा चूर ।।
चाउर पिसान घोर के, लई बना ले फेट ।
गरम चिला हाथ मा, चटनी संग लपेट ।।
धनिया मिरचा संग ले, शील लोढिया घीस ।
बंगाला ला डार के, मन लगा के पीस ।।
गुल गुल भजिया छान ले, दे करईहा तेल ।
गरम गरम धर हाथ मा, गबर गबर तैं झेल ।।
-रमेश चौहान
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