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कतका झन देखे हें-

आंखी होथे तीन ठन

श्रद्धा अउ विश्वास हा, आथे अपने आप । कथरी ओढ़े घीव पी, राम नाम ला जाप ।। गलती ले जे सीखथे, अनुभव ओखर नाम । जीवन के पटपर डगर, आथे वोही काम ।। उल्टा तोरे सोच के, दिखय कहू गा बात । गुस्सा मन मा फूटथे, लाई कस दिन रात ।। एक होय ना मत कभू, जुरे चार विद्वान । अपन अपन के तर्क ले, बनथे खुदे महान ।। एक करे बर सोच ला, सुने ल परथे गोठ । सुन दूसर के गोठ ला, मनखे होथे पोठ ।। दवा क्रोध के एक हे, सहनशील मन होय । क्षमा दान ला मान दै, शांति जगत मा बोय ।। दिखय नही चेथी अपन, करलव लाख उपाय । गलती चेदी मा बसय, कइसे लेब नसाय । देखे बर मुॅह ला अपन, दर्पण चाही एक । अपने चारी जे सुनय, बन जाथे ओ नेक ।। कहिना कोनो बात ला, घात सहज मन मोय । काम करे बर कोखरो, जांगर नई तो होय ।। आंखी होथे तीन ठन, दू जग ला देखाय । तीसर आंखी मन हवय, अपने देह जनाय ।।

ये अचरज के बात हे

पेट भरे बर एक हा, हजम करे बर एक । दूनों रेंगय कोस भर, भोगय रोग हरेक ।। रोटी खोजय एक हा, बेरा खोजय एक । दूनों मेरा हे कमी, मनखे हवय जतेक ।। कइसन ये लाचार हे, परे रहय बीमार । कइसन ओ बीमार हे, बने रहय लाचार ।। -रमेश चौहान

दाेहा के मरम

कविता के हर शब्द मा, अनुशासन के बंद । आखर आखर के परख, गढ़थे सुघ्घर छंद ।। चार चरण दू डांड़ के, होथे दोहा छंद । तेरा ग्यारा होय यति, रच ले तै मतिमंद ।। विषम चरण के अंत मा, रगण नगण तो होय । तुक बंदी  सम चरण रख, अंत गुरू लघु होय ।। समुदर ला धर दोहनी, दोहा हा इतराय । अंतस बइठे जाय के, अपने रंग जमाय ।। बात बात मा बात ला, मनखे ला समझाय । दोहा अइसन छंद हे, जेला जन जन भाय ।। दोहा हिन्दी साहित्य के, बने हवय पहिचान । बीजक संत कबीर के, तुलसी मानस गान ।। छत्तीसगढ़ी मा घला, दोहा के हे मान । धनीधरम जी हे रचे, जाने जगत जहान ।। विप्र दलित मन हे रचे, रचत हवे बुधराम । अरूण निगग ला देख ले, रचत हवय अविराम  ।। बोली ले भासा गढ़ी, रखी सोच ला रोठ । शिल्प विधा मा हम रची, जुर मिल रचना पोठ ।। अनुसासन के पाठ ले, बनथे कोनो छंद । देख ताक के शब्द रख, बन जाही मकरंद ।। छोट बुद्धि तो मोर हे, करत हंवव परयास । चतुरा चतुरा बड़ हवय, लाही जेन उजास ।।

छत्तीसगढिया

दाई के गोरस असन, छत्तीसगढी बोल । तोर मोर रग मा भरे, देखव ऑखी खोल ।। हमरे भाखा मा घुरे, दया मया भरपूर । मनखे मनखे मन रहय, मनखेपन मा चूर ।। चाउर पिसान घोर के, लई बना ले फेट । गरम चिला हाथ मा, चटनी संग लपेट ।। धनिया मिरचा संग ले, शील लोढिया घीस । बंगाला ला डार के, मन लगा के पीस ।। गुल गुल भजिया छान ले, दे करईहा तेल । गरम गरम धर हाथ मा, गबर गबर तैं झेल ।। -रमेश चौहान

चार ठन दोहा

मनखे लीला तोर तो, जाने ना भगवान । बन गे दानव देवता, बने नही इंसान ।। गाली अपने आप ला. कब तक देहू आप । चाल ढाल अपने बदल. काबर करथस पाप ॥ करथे सब झन गोठ भर. काम करय ना कोय । काम कहू सब झन करय. गोठे काबर होय ॥ बदलव अपने आप ला. बदल जही संसार । देख देख संसार ला. काबर बदले झार ॥ तहूँ बने गुरु अउ महूँ. चेला बनही कोन । पूछ पूछ ओखर डहर. काबर ब इठे मोन ॥ -रमेश चौहान

नवा साल के बधाई

नवा साल के आप ला, हवय बधाई खूब । नवा साल मा रात दिन, रहव खुशी मा डूब ।। दुख हा भागय तोर ले, कोसो कोसो दूर । खुशी मिलय गा रात दिन, अन्न-धन्न भरपूर ।।

महिना आगे पूस के

महिना आगे पूस के, दिन भर लागय जाड़ । हाथ-पाव हा कापथे,  जइसे डोले झाड़ ।। हू हू मुॅह हा तो करय, जइसे सिसरी बोल । परे जाड़ जब पूस के, मुक्का होजय ढोल ।। महिना आगे पूस के, लेही मोर परान । ना कदरी ना गोदरी, ना परछी रेगान ।। कांटा न झिटी गांव मा, दिखे न कोनो खार । कहय डहत ये पूस हा, अब तो भूरी बार । जानय ना धनवान हा, कइसे होथे पूस । कांपत हम बिन चेंदरा, ओ पहिरे हे ठूस ।।

छेरछेरा

आज छेरछेरा परब, दे कोठी के धान । अन्न दान ले ना बड़े, जग मा कोनो दान । जय हो दानी तोर ओ, करे खूब तैं दान । आज छेरछेरा परब, राखे ऐखर मान । दान करे मा धन बढ़य, जइसे बाढ़े धान । देवत हम आशीष हन, बने रहव धनवान ।। पायेंन बहुत दान हम, मालिक तोर दुवार । जीयव हजार साल तुम, आशीष लव हमार ।।

सरकारी स्कूल मा

हर सरकारी स्कूल मा, एक बात हे नेक । लइका मन कुछु करय, कोनो रखे न छेक ।। थारी लोटा ठोक के, लइका खेले खेल । गुरूजी गे हे सर्वे मा, होत कहां हे मेल ।। बाल देव भव हे लिखे, सबो स्कूल मा देख । भोग लगा पूजा करव, पथरा माथा टेक ।। पढ़ई लिखई छोड़ के, ले लव कुछु भी काम । गुरूजी हा ठलहा हवय, मास्टर ओखर नाम । बात करू हे लीम कस, कोनो दय ना ध्यान । नेता अउ सरकार हा, रखे कहां हे मान ।। हमरो गुरूजी मन घला, कहां सोचथे बात । लइका हा कइसे पढ़य, मेटय कइसे रात ।। तनखा अपन बढ़ाय बर, खूब करे हड़ताल । शिक्षा सुधरय सोच के, करे कभू पड़ताल ।।

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