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कतका झन देखे हें-

मया

कुची हथौड़ा के किस्सा । मनखे मन के हे हिस्सा हथौड़ा ह ताकत जोरय । कुचर-कुचर तारा टोरय  । अतकी जड़ कुची ह रहिथे । मया म तारा ले कहिथे मया मोर अंतस धर ले  ।  अपने कोरा मा भर ले जब तारा-चाबी मिलथे । मया म तारा हा खुलथे एक ह जोड़े ला जानय । दूसर टोरे मा मानय लहर-लहर झाड़ी डोले ।  जब आंधी हा मुँह खोले रूखवा ठाड़े गिर परथे । अकड़न-जकड़न हा मरथे

राम कथा के सार

राम  कथा मनखे सुनय, धरय नहीं कुछु कान । करम राम कस करय नहि, मारत रहिथे शान ।। राम भरत के सुन कथा, कोने करय बिचार । भाई भाई होत हे, धन दौलत बेकार ।। दान करे हे राम हा, जीते लंका राज । बेजा कब्जा के इहाँ, काबर हे सम्राज ।। गौ माता के उद्धार बर,  जनम धरे हे राम । चरिया परिया छेक के,  मनखे करथे नाम ।। करम जगत मा सार हे, रामायण के काम । करम करत रावण बनव, चाहे बन जौ राम । नैतिक शिक्षा बिन पढे, सब शिक्षा बेकार । थोर बहुत तो मान ले, मनखे बन संसार ।। -रमेश चौहान

चोरी होगे खोर गली हा

बबा पहर मा खोर गली हा, लागय कोला बारी । ददा पहर मा बइला गाड़ी, आवय हमर दुवारी,  । नवा जमाना के काम नवा, नवा नवा घर कुरिया । नवा-नवा फेषन के आये, जुन्ना होगे फरिया ।। सब पैठा रेंगान टूटगे, टूटगे हे ओरवाती । तभो गली के काबर अब तो, छोटे लागय छाती ।। घर ओही हे पारा ओही, खोर गली ओही हे । गुदा-गुदा दिखय नही अब तो, बाचे बस गोही हे । मोर पहर के बात अलग हे, फटफटी न आवय । चोरी होगे खोर गली हा, पता न कोनो पावय ।।

बिता भर के टुरा कहय तोर बाप के का जात हे

बिता भर के टुरा कहय तोर बाप के का जात हे कउवां कुकुर कस डोकरा भुकय देख अपन गांव के लइका ला अपन हद म रहे रहव बाबू झन टोरव लाज के फइका ला ही-ही भकभक जादा झन करव तोरे दाई-माई जात हे गली मोहाटी बाटल-साटल खोले काबर बइठे दारू मंद के आगी म जरे मरे सांप कस अइठे सरहा कोतरी के मास तोला कइसन भात हे गली-गली म डिलवा ब्रेकर तोर सेखी न रोक सकय तोरे दीदी भाई-भोजी तोला कोसत अपने थकय घूम-घूम क मेछरावत गोल्लर नागर म कहां कमात हे ।

मया ल ओ अनवासय

मुचुर-मुचुर जब हासय ओ मोटीयारी मया ल तो अनवासय बिहनिया असन छाये चुक लाली-लाली सबके मन ला भाये चिरई कस ओ चहकय खोल अपन पांखी मन बादर मा गमकय फूल डोहड़ी फूले झुमर-झुमर डारा चारो-कोती झूले अंतस मा मया धरे आँखी गढियाये बिन बोले गोठ करे

साल नवा

नवा सोच के नवा साल के बधाई (दुर्मिल सवैया) मनखे मनखे मन खोजत हे,  दिन रात खुशी अपने मन के । कुछु कारण आवय तो अइसे, दुख मेटय जेन ह ये तन के । सब झंझट छोड़ मनावव गा, मिलके  कुछु कांहि तिहार नवा । मन मा भर के सुख के सपना,  सब कोइ मनावव साल नवा ।। -रमेश चौहान

सबला देवव संगी काम

कोने ढिंढोरा पिटत हवय, जात पात हा होगे एक । हमर हमर चिल्लावत हावे, कट्टर होके मनखे नेक ।। एक लाभ बर जात बताये, दूसर बर ओ जात लुकाय । बिन पेंदी के लोटा जइसे, ढुलमूल ढुलमुल ढुलगत जाय ।। दू धारी तलवार धरे हे, हमर देश के हर सरकार । जात पात छोड़व कहि कहि के, खुद राखे हे छांट निमार ।। खाना-पीना एके होगे, टूरा-टूरी घला ह एक । काबर ठाड़े हावे भिथिया, जात-पात के अबले झेक । सबले आघू जेन खड़े हे, कइसे पिछड़ा नाम धराय । सब ला जेन दबावत हावे, काबर आजे दलित कहाय ।। जे पाछू मा दबे परे हे, हर मनखे ला रखव सरेख । मनखे मनखे एके होथे, जात पात ला तैं झन देख ।। काम -धाम जेखर मेरा हे, जग मा होथे ओखर नाम । जेन हवे जरूरत के मनखे,  सबला देवव संगी काम ।।

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