भाखा गुरतुर बोल तै, जेन सबो ल सुहाय । छत्तीसगढ़ी मन भरे, भाव बने फरिआय ।। भाव बने फरिआय, लगय हित-मीत समागे । बगरावव संसार, गीत तै सुघ्घर गाके । झन गावव अश्लील, बेच के तै तो पागा । अपन मान सम्मान, ददा दाई ये भाखा ।।
भरत बुलन्दी की कविताएँ
-
भाई और खाई दीवारों पर तस्वीरों में भाई है।दिल में लेकिन लंबी गहरी खाई है।।
बँटवारे में हमने सब कुछ बाँट लिया ।आखिर किसके हिस्से बूढ़ी माईं है।। उसकी
नैया…
17 घंटे पहले