देखत रद्दा तोर गा, आंखी गे पथराय। संझा आहूू तै कहे, अब ले नइ तो आय ।। अब ले नइ तो आय, तोर कोनो संदेशा । फरकत आंखी मोर, लगत मोला अंदेशा ।। होबे कोनो मेर, बने गदहा कस रेकत । पिये छकत ले दारू, परे होबे तै देखत ।।
पुस्तक:छत्तीसगढ़ी काव्यकाव्य एक वृहंगम दृष्टि- रामेश्वर शर्मा
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क्यों पढ़ें यह पुस्तक छत्तीसगढ़ी काव्य: एक विहंगम दृष्टि छत्तीसगढ़ की
साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अनमोल संग्रह है, जो पाठकों को इस
क्षेत्र की समृद्...
1 हफ़्ते पहले