रूप न रंग न नाम हवे कुछु, फेर बसे हर रंग म हे । रूप बने न कभू बिन ओखर, ओ सबके संग म हे ।। नाम अनेक भले कहिथे जग, ईश्वर फेर अनाम हवे । केवल मंदिर मस्जिद मा नहि, ओ हर तो हर धाम हवे ।।
पुस्तक समीक्षा: ”कर्ण हूॅुं मैं” लेखक-श्री पवन प्रेमी जी, समीक्षक-डुमन लाल
ध्रुव
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भावों के अनुभव संसार को, यथार्थ के अन्तश्चेतना काव्य संग्रह – कर्ण हूं मैं
– डुमन लाल ध्रुव राज्य प्रशासनिक सेवा अधिकारी एवं साहित्य के समदर्शी कवि
श्री पव...
1 दिन पहले