ऐती ओती चारो कोती एकेच जयकारा हे । जय हो दारू, जय हो दारू, जय हो दारू।। कोनो कहय ये नवा जमाना के चलन हे, त कोनो कोनो कहय ये काम हे शैतानी । आज के मनखे तोर संग करे हे मितानी , लइका सीयान या होय जवान सबो हे तोर मयारू ।। जय हो दारू, जय हो दारू, जय हो दारू दूघ गली गली बेचाये हे, तभो ऐला कहां कोनो भाये हे । तोला पाये बर मनखे अपन थारी लोटा ल मड़ाय हे, ऐखरी सेती करम ल ठठाय हे, घर के मेहरारू ।। जय हो दारू, जय हो दारू, जय हो दारू तोर ठौर ल मिले हे मंदिर के सानी, गीरा गंभीर हे तोर भगत मन के कहानी । तोर भगत सुत उठ के तोरे दरस ल पाथे, बिहनिया, मझनिया,अऊ संझा तीनों बेर हाजरी लगाथे । तभो ले तोर भक्तन मन तोला पाय बर अऊ अऊ ललचाथे, तोर भगत मन के भगती ह हवय चारू-चारू ।। जय हो दारू, जय हो दारू, जय हो दारू कोनो कोनो भगतन अपन घर-कुरीया घला चढ़ाये हे, कोनो कोनो दुरपती कस अपन बाई ल दाव म लगाये हे । लइका बच्चा के घला ओला चिंता कहां सताये हे, तभे तो जम्मा घर के जिनीस वो ह बेच खाये हे । अब तो वो तोर दुवारी म लगावत हे झाडू ।। जय हो दारू, जय हो दारू, जय हो दारू तोर भगती म कुछ भगतन एइ
छत्तीसगढ़ी म भागवत कथा भाग-6.परिक्षित के गर्भ मा रक्षा
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‘छत्तीसगढ़ी म भागवत कथा’ एक महाकाव्य के रूप म लिखे जात हे ऐला धीरे-धीरे
कई भाग म प्रकाशित करे जाही । एला श्रीमद्भागवत अउ सुखसागर आधार ग्रंथ ले के
छत्तीस...
5 दिन पहले