कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय
(श्री हरिवंशराय बच्चन की अमर कृति ‘‘कोशिश करने वालो की हार नही होती‘‘ का अनुवाद)
लहरा ले डरराये म डोंगा पार नई होवय,
कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय ।
नान्हे नान्हे चिटीमन जब दाना लेके चलते,
एक बार ल कोन कहिस घेरी घेरी गिरते तभो सम्हलते ।
मन चंगा त कठौती म गंगा, मन के जिते जित हे मन के हारे हार,
मन कहू हरियर हे तौ का गिरना अऊ का चढना कोन करथे परवाह ।
कइसनो होय ओखर मेहनत बेकार नई होवय,
कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय ।
डुबकी समुददर म गोताखोर ह लगाथे,
फेर फेर डुबथे फेर फेर खोजथ खालीच हाथ आथे ।
अतका सहज कहां हे मोती खोजना गहरा पानी म,
बढथे तभो ले उत्साह ह दुगुना दुगुना ऐही हरानी म ।
मुठठी हरबार ओखर खाली नई होवय,
कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय ।
नकामी घला एक चुनौती हे ऐला तै मान,
का कमी रहिगे, का गलती होगे तेनला तै जान ।
जब तक न होबो सफल आराम हराम हे,
संघर्ष ले झन भागव ऐही चारो धाम हे ।
कुछु करे बिना कभू जय जयकार नई होवय,
कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय ।
.................‘‘रमेश‘‘.....................
(श्री हरिवंशराय बच्चन की अमर कृति ‘‘कोशिश करने वालो की हार नही होती‘‘ का अनुवाद)
लहरा ले डरराये म डोंगा पार नई होवय,
कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय ।
नान्हे नान्हे चिटीमन जब दाना लेके चलते,
एक बार ल कोन कहिस घेरी घेरी गिरते तभो सम्हलते ।
मन चंगा त कठौती म गंगा, मन के जिते जित हे मन के हारे हार,
मन कहू हरियर हे तौ का गिरना अऊ का चढना कोन करथे परवाह ।
कइसनो होय ओखर मेहनत बेकार नई होवय,
कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय ।
डुबकी समुददर म गोताखोर ह लगाथे,
फेर फेर डुबथे फेर फेर खोजथ खालीच हाथ आथे ।
अतका सहज कहां हे मोती खोजना गहरा पानी म,
बढथे तभो ले उत्साह ह दुगुना दुगुना ऐही हरानी म ।
मुठठी हरबार ओखर खाली नई होवय,
कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय ।
नकामी घला एक चुनौती हे ऐला तै मान,
का कमी रहिगे, का गलती होगे तेनला तै जान ।
जब तक न होबो सफल आराम हराम हे,
संघर्ष ले झन भागव ऐही चारो धाम हे ।
कुछु करे बिना कभू जय जयकार नई होवय,
कोशिश करईया मन के कभु हार नई होवय ।
.................‘‘रमेश‘‘.....................
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