ये मीठ -मीठ सुरता, नई बनतये कुछु कहासी रे । कभू कभू आथे मोला हासी, कभू आथे रोवासी रे ।। दाई के कोरा, गोरस पियेव अचरा के ओरा । कइसन अब मोला आवत हे खिलखिलासी रे ।। दाई के मया, पाये पाये खेलाय खवाय । अपन हाथ ले बोरे अऊ बासी रे ।। दाई ल छोड़के, नई भाइस मोला कहूं जवासी रे । लगत रहिस येही मथुरा अऊ येही काषी रे ।। ददा के अंगरी, धर के रेंगेंव जस ठेंगड़ी । गिरत अपटत देख ददा के छुटे हासी रे ।। ददा कभू बनय घोड़ा-घोड़ी , कभू करय हसी ठिठोली । कभू कभू संग म खेलय भौरा बाटी रे ।। कभू कभू ददा खिसयावय कभू दाई देवय गारी रे । करेव गलती अब सुरता म आथे रोवासी रे ।। निगोटिया संगी, संग चलय जस पवन सतरंगी । पानी संग पानी बन खेलेन माटी संग माटी रे ।। आनी बानी के खेल खेलेन कभू बने बने त कभू कभू झगरेन । कभू बोलन कभू कभू अनबोलना रह करेन ठिठोली रे ।। ओ लइकापन के सुरता अब तो मोला आथे मिठ मिठ हासी रे । गय जमाना लउटय नही सोच के आवत हे रोवासी रे ।। .-रमेशकुमार सिंह चैहान
छत्तीसगढ़ी म भागवत कथा भाग-6.परिक्षित के गर्भ मा रक्षा
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‘छत्तीसगढ़ी म भागवत कथा’ एक महाकाव्य के रूप म लिखे जात हे ऐला धीरे-धीरे
कई भाग म प्रकाशित करे जाही । एला श्रीमद्भागवत अउ सुखसागर आधार ग्रंथ ले के
छत्तीस...
1 दिन पहले