अरे पगली,
मै होगेव पगला,
तोर मया म ।
तोर सुरता,
निंद भूख हरागे,
मया म तोर ।
रात के चंदा,
चांदनी ल देखव,
एकटक रे ।
कब होही रे,
मया संग मिलाप ,
गुनत हव ।
मया नई हे,
गोरी के अंतस म,
सुर्रत हव ।
एक नजर,
देख तो मोरो कोती,
मया के संगी ।
....‘रमेश‘...
छत्तीसगढ़ी भाषा अउ छत्तीसगढ़ के धरोहर ल समर्पित रमेशकुमार सिंह चौहान के छत्तीसगढ़ी छंद कविता के कोठी ( rkdevendra.blogspot.com) छत्तीसगढ़ी म छंद विधा ल प्रोत्साहित करे बर बनाए गए हे । इहॉं आप मात्रिक छंद दोहा, चौपाई आदि और वार्णिक छंद के संगेसंग गजल, तुकांत अउ अतुकांत कविता पढ़ सकत हंव ।
मया के रंग
जवाब देंहटाएंऊँकर पदचाप
जलतरंग ।
रमेश भाई, आप बढिया लिखे हव,फेर एकरो ले सुघ्घर लिख सकत हव । "बृज अवधी सरिख छत्तीसगढी बन जातिस सूर तुलसी सरिख साहित्य हमला रचना हे।
मैथिली ल विद्यापति जइसे अमर बना दिहिस
वोही ढंग के भगीरथ प्रयास हमला करना हे ।"
आपके सुझाव माथा धरत आप ला परनाम
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