सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

कतका झन देखे हें-

मत्तगयंद सवैया

पूस धरे जुड़ कापत आवत, देखत घाम लजावत भागे । बादर हे बरसे कुहरा जब, सूरज देव लुकाय लजाके ।। फूल झरे अइलावत जाड़ म डार सफेद करा जब छागे । सोवत हे मनखे मुड़ तोपत, लात सकेलत जाड़ ल पाके । -रमेश चौहान

अनदेखी

देखा देखी के चलन, अनदेखी ग कहाय । अपने मन अनदेखना, कइसे तोला भाय ।। कइसे तोला भाय, पेट मा पीरा होथे । ओ रद्दा मा तोर, लुका के काटा बोथे ।। करत हे गा ‘रमेश‘, ओखरो लेखा लेखी । आज नही ता काल, करे बर देखा देखी ।।

ठउर घूमे के तरिया

तरिया नरवा गांव के, हिल स्टेसन तो आय । लइका बच्चा मन जिहां, घूमे बर तो जाय ।। घूमे बर तो जाय, रोज संझा सब जहुंरिया । जुरमिल बइठे पार, धरे मोबाइल करिया ।। आनी बानी गोठ, ओरसावय सब चरिया । निस्तारी के संग, ठउर घूमे के तरिया ।।

नवा साल

नवा साल के करव सब, परघौनी दिल खोल । नाचव कूदव बने तुम, बजा नगाड़ा ढोल ।। बजा नगाड़ा ढोल, खुशी के अइसन बेरा । पाछू झन तै देख, हवय आगू मा डेरा ।। ‘रमेश‘ गा ले गीत, खुशी के गढ़ ताल नवा । होही बड़ फुरमान, सबो ला ये साल नवा ।।

मोर सुवारी

मोर सुवारी के मया, घर परिवार बनाय । संगी पीरा के बनय, अर्धांगनी कहाय ।। अर्धांगनी कहाय, काम मा हाथ बटा के । घर के बूता संग, खेत मा घला कमा के ।। सास ससुर के मान, करय बन ओखर प्यारी । ‘रमेश‘ करथे मान, हवय धन धन मोर सुवारी ।।

पुसवा के जाड़

बिहनिया बिहनिया, सुत उठ के देख ले,  अपन तै चारो कोती, नवा नवा घाम मा । हरियर हरियर, धरती के लुगरा मा,  सीत जरी कस लागे, पुसवा ये धाम मा ।। निकाल मुॅंह ले धुॅवा, चोंगी के नकल करे,  चिढ़ावत हे बबा ला,  माखुर के नाम मा । भुरी तापत बइठे, चाय चुहकत बबा,  उठ उठ चिल्लावय,  चलव रेे काम मा  ।

बात मत कर जहर सने

बने चलत ये काम हा, तोला नई सुहाय । होके ओखर आदमी, काबर टांग अड़ाय ।। काबर टांग अड़ाय, बेसुरा राग तै छेड़े । गुजरे दिन के बात, फेर काबर तै हेरे ।। करना बहुते काम, बात मत कर जहर सने । हिन्दू मुस्लिम साथ, काल रहिहीं बने बने ।।

मोर दूसर ब्लॉग