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कतका झन देखे हें-

आॅंखी सपना तै सजा

आॅंखी सपना तै सजा, अपन भाग झन कोस । चमक दमक रख चेहरा, मन मा भर ले जोष ।। मन मा भर ले जोश, काम दम भर कर ले । भाग करम के दास, अपन तै मुठ्ठी भर ले ।। छू ले बादर आज, खोल के डेना पांखी । दुनिया होही तोर, देख ले खोले आंखी ।।

भ्रस्टाचारी

भ्रस्टाचारी हे सबो, थोर थोर हे फेर । कोनो जांगर के करे, कोनो पइसा हेर ।। कोनो पइसा हेर, काम सरकारी करथे । ले परसेंटेज, जेब अपने वो भरथे ।। हवय रे काम चोर, करमचारी सरकारी । बिना काम के दाम, लेत हें भ्रस्टाचारी ।। सरकारी सब काम मा, कागज के हे खेल । कागज के डोंगा बने, कागज के गा रेल ।। कागज के गा रेल, उड़ावत हवे हवा मा । वेंटिलेटर मरीज, जियत हे जिहां दुवा मा ।। इक पइसा के काम, होय गा जिहां हजारी । काम उही ह कहाय, हमर बर तो सरकारी ।।

कहय ददा हा रोज

ओही ओही बात ला, कहय ददा हा रोज । झन जा बेटा ओ डगर, जाना गा तैं सोज ।। जाना गा तैं सोज, छोड़ संगती के तलब । अपन काम ले काम, कोखरो से का मतलब । कहे हवय ग ‘रमेश‘, मुड़ी धर के ओ रोही । लोफड़ लम्पट संग, परे हे ओही ओही ।।

झूमत नाचत फागुन आगे (मत्तगयंद सवैया)

हे गमके महुवा जब पीयर, पाय नशा जड़ चेतन जागे । हो बहिया भवरा जब मातय, रंग बिरंग कली हर छागे ।। हे मउरे अमुवा सरसो जब, ये धरती हर दुल्हन लागे । कोयल हे कुहके जब बागन झूमत नाचत फागुन आगे ।। छाय बने परसा कलगी बन, झूम बसंत ले पगड़ी मुड बांधे । घाम न जाड़ जनावत हे जब मंद सुगंध बयार ह आगे।। पाय नवा जिनगी बुढ़वा रूख डोलत वो लइका कस लागे । झूमय रे तितली जब फूलन झूमत नाचत फागुन आगे ।। गावय फाग धरे टिमकी सब लेत बलावत मोहन राधे । हाथ गुलाल धरे मुह पोतय, मान बुरा मत बोलय साधे ।। हाथ धरे पिचका लइका हर रंग भरे अउ डारन लागे । रंग गुलाल उड़े जब बादर झूमत नाचत फागुन आगे ।।

आनी बानी गीत गा

आनी बानी गीत गा, बने रहय श्रृंगार  । गढ़व शब्द के ओढ़ना, लोक-लाज सम्हार ।। लोक-लाज सम्हार, परी कस सुघ्घर लागय । छत्तीसगढ़ी गीत, देश परदेश म छाजय ।। गुरतुर लागय गीत, होय जस आमा चानी । दू अर्थी बोल, गढ़व मत आनी बानी ।।

भाखा गुरतुर बोल तै

भाखा गुरतुर बोल तै, जेन सबो ल सुहाय । छत्तीसगढ़ी मन भरे, भाव बने फरिआय ।। भाव बने फरिआय, लगय हित-मीत समागे । बगरावव संसार, गीत तै सुघ्घर गाके । झन गावव अश्लील, बेच के तै तो पागा । अपन मान सम्मान, ददा दाई ये भाखा ।।

फागुनवा

फागुनवा तन-मन चढ़य, जभे सुनावय फाग । कोयलिया कुहके तभे, आमा मउरे बाग ।। आमा मउरे बाग, सजे हे दुल्हा जइसे । गमके हे अंगूर, बाचबे तै हर कइसे ।। ढोल नगाड़ा ताश, जगावय गा जोश नवा । लइका संग सियान, मनावय गा फागुनवा ।। -रमेश चौहान

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