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संदेश

कतका झन देखे हें-

सबो फिक्स हे खेल मा

कतको तै हर कूद ले, नइ चलय तोर दांव । सबो फिक्स हे खेल मा, फिक्स हवय हर नाव ।। फिक्स हवय हर नाव, सलेक्सन काखर होही । खुल-खुल हॅसही कोन, कोन माथा धर रोही ।। हे सरकारी काम, तुमन जादा झन भटको । भीड़ा अपन जुगाड़, इहां मिलही रे कतको ।। -रमेश चौहान

करत अकेल्ला काम

कइसे करबे काम ला, देखत हे संसार । तही अकेल्ला शेर हस, बाकी सबो सियार ।। बाकी सबो सियार, शेर के लइका होके । भुलाय अपन सुभाव, लुकावत हे रो रो के ।। हर मुखिया के हाल, हवय रे कुछ तो अइसे । करत अकेल्ला काम, काम होवय रे कइसे ।।

घाम जेठ के घात हे

घाम जेठ के घात हे, रद्दा जाके जांच । कान नाक मुॅह तोप के, झोला ले तै बाच ।। झोला ले तै बाच, गोंदली जेब धरे रह । अदर-कचर झन बोज, भूख ला थोकिन तै सह ।। मुॅह झन तोर सुखाय, थिरा ले छांव बेठ के । हरर-हरर हे घात, आज तो घाम जेठ के ।। -रमेश चौहान

मया ले सनाय दिल गा

मिरगा कस खोजत हवस, गांव गली अउ खोर । कसतूरी कस हे मया, समाय भीतर तोर ।। समाय भीतर तोर, मया ला पाके उपजे । रगड़ होय जब बांस, बास मा आगी सिरजे ।। महर महर ममहाय, मया ले सनाय दिल गा । खूब कूदत नाचत, पाय ओ मयारू मिरगा ।।

रहव मत बइठे-बइठे

बइठे-बइठे कोन हा,देही हमला खाय । कोन कहय पर ला इहां, अपने हा चिल्लाय ।। अपने हा चिल्लाय, वाह रे जांगर चोट्टा । चुहक-चुहक के खून, जोंख  कस होगे रोठ्ठा । कह ‘रमेश‘ कविराय, जगत हे अइठे-अइठे ।। हाथ-गोड़ ला पाय, रहव मत बइठे-बइठे ।।

जरे काहेेक भोमरा

जरे काहेेक भोमरा, झरे काहेक झांझ । छोड़ मझनिया के हरर, जरे जेठ के सांझ ।। जरे जेठ के सांझ, ताव आगी भठ्ठी कस । हाथ-गोड़ मुॅह-नाक, होय भाजी-पाला जस ।। कइसन के अइलाय, भाप कस जब हवा झरे । लेसावत हे देह, ओनहा हर घला जरे ।। -रमेश चौहान

मोरे घर के हाल ला

मोरे घर के हाल ला, कोन ला का बतांव । झूठ लबारी बोल के, अपने ला भरमांव ।। अपने ला भरमांव, मूंद के अपने आंखी । लइका मन के आज, जाग गे हे गा पांखी ।। बतावत आत लाज, मोर बर बरकस छोरे । गारी-गल्ला देत, रात दिन बेटा मोरे ।।

तभो ददा हा, समझाथे

जेखरे भरोसा, पांच परोसा, तीनो बेरा, ओ खाथे । सुत उठ बिहनिया, खरे मझनिया, रात बियारी, धमकाथे । घर बइठे बइठे, काबर अइठे, अपन रौब ला, देखाथे । ददा ला ना भावय, ना डररावय, तभो ददा हा, समझाथे ।। बेटा बातें सुन, थोकिन तै गुन, अपने जीवन, तै गढ़ ना । दुनिया इक मेला, पड़ न झमेला, रद्दा आघू , तै बढ़ ना ।। हे गा पूछारी, सबो दुवारी, काम बुता ला, जे जाने । सुन बेटा हमार, हवय दरकार, अपने हिम्मत, जे माने ।। हे तोरे अंदर, एक समुंदर, जेला तोला, हे मथना । जब खुदे कमाबे, अमृत ल पाबे, जेला तोला, हे चखना ।। अपने बांटा धर, लालच झन कर, देखा-देखी, दुनिया के । बात मान अतके, झन रह सपटे, बन जाबे तै, गुनिया के ।।

लाल होगे हे जंगल

जंगल झाड़ी तोर हे, रूख राई हर तोर । मनखे मनखे तोर हे,काबर मचाय शोर ।। काबर मचाय शोर, धरे बंदूक खांध मा । सिधवा ला बहकाय, घूसरे हवस मांद मा ।। तहीं बरोबर सोच, होहि कइसे गा मंगल । कब तक पीबे खून, लाल होगे हे जंगल ।

कान्हा बंशी जब फुके

कान्हा बंशी जब फुके, झरे झमा झम राग । चेतन मा कोने कहय, जड़ मा जागे अनुराग ।। जड़ मा जागे अनुराग, होय राधा कस माटी । धुर्रा बने उडाय, छुये कान्हा के साटी ।। ब्रज के ठुठवा पेड़, राग सुन होगे नान्हा । नान्हा-नानचुक घाट-बाट चिल्लाय, अरे ओ कान्हा-कान्हा ।।

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