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संदेश

कतका झन देखे हें-

कुछ मत मिले हराम

भला-बुरा तै सोच के, करले अपने काम । बिगड़य झन कुछु कोखरो, कुछ मत मिले हराम ।। कुछ मत मिले हराम,  कमा ले जांगर टोरे । दूसर के कुछु दोस, ताक मत आंखी बोरे ।। अपने अंदर झांक, नेकि के हवस खुरा तै । करले सुघ्घर काम, सोच के भला-बुरा तै ।।

साफ बोले मा हे बुराई का

आदरणीय सौरभ पाण्ड़े के भोजपुरी गजल ‘‘साफ़ बोले में बा हिनाई का ? काहें बूझीं पहाड़-राई का ? ‘‘ के छत्तीसगढ़ी मा अनुवाद - ------------------------------- साफ बोले मा हे बुराई का ? डबरा डिलवा हवय बताई का ?? रात दिन मा मितानी हे कइसन ? धंधा पानी मा भाई-भाई का ?? सब इहां तो हवय सुवारथ मा ? होय मा हमरे जग हसाई का ?? चंदा ला घेरे हे गा चंदैनी, कोनो इंहा सभा बलाई का ?? आज साहित्य के मुनाफा का ? ददरिया करमा गीत गाई का ?? जब मुठा के पकड़ बताना हे, फेर ये हाथ अउ कलाई का ?? खुदकुसी के हुनर मा माहिर हम, फेर का कामना, बधाई का ? कोखरो मुॅंह मा खून जब लागय, जानथन ऐखरे दवाई का ??

पुरखा के ये साधना

जुन्ना जुन्ना गोठ ला, खरा सोन तै जान । पुरखा के ये साधना, साधे सबो सियान ।। साधे सबो सियान, जिंनगी अपन उतारे । सुख-दुख के सब काम, सबो झन बने सवारे ।। कह ‘रमेश्‍ा‘ कवि राय, गोठ सुन मोरे मुन्ना । अजमा के तैं देख, गोठ हे सुघ्घर जुन्ना ।। जेन सहय रे आॅच ला, खाय तेन हर पाॅंच । खुल्ला किताब हाथ मा, लेवा कोनो बाॅच ।। लेवा कोनो बाॅच, जगत के येही सच हे । सहे जेन तकलीफ, आज ओही हा गच हे ।। जीवन एक सवाल, सियाने मन इहां कहय रे । उत्तर देथे पोठ, आदमी जेन सहय रे ।।

काम कोने हर आथे

आथे अलहन सांय ले, धर के कोनो रंग । दू पइसा रख हाथ मा, बेरा मा दै संग ।। बेरा मा दै संग, ददा दाई तो बनके । पइसा बन भगवान, संग देही जी तन के ।। कह ‘रमेश‘ कविराय, सबो ला पइसा भाथे । जग मा पइसा छोड़, काम कोने हर आथे ।।

मोरे मन के पीर

देखत तो रहिगेंव मैं, वो सपना दिन रात । गोठियावंव का अपन, सपना के वो बात ।। सपना के ओ बात, गीत मोरे कब बनगे । मोरे मन के पीर, गीत मा कइसे ढल गे ।। गोहरात रहिगेंव, आंसु आंखी के पोछत । अक्केल्ला मत छोड़, तभो गय मोला देखत ।।

हिम्मत कतका तोर हे

हिम्मत कतका तोर हे, लड़थस दूसर संग । बात बात मा तै करे, दूसर ला बड़ तंग ।। दूसर ला बड़ तंग, करे बड़ गलती देखे । दउड़े पीसे दांत, हाथ मा लाठी लेके । बारी अपने देख, करे तैं कतका किम्मत । अपने गलती देख, हवय गर तोरे हिम्मत ।।

रंधहनी मा झाक तो

रंधहनी मा झाक तो, कइसे बनथे भात । माई लोगिन का करे, कइसे ओ सिरजात ।। कइसे ओ सिरजात, चूलहा मा आगी जी । कइसे रांधे भात, रांधते कइसे भाजी जी ।। दया मया ला डार, बनाये हवय सही मा । जेवन हर ममहाय, तभे तो रंधहनी मा ।।

सरग उतर गे खेत मा

सरग उतर गे खेत मा, छोड़ के आसमान । करत हवे बावत गजब, जिहां हमरे किसान ।। जिहां हमरे किसान, भुंइया के जतन करत हे । धरती के भगवान, जगत बर धान छिछत हे ।। देखत अइसन काम, सुरुज हा घला ठहर गे । देखे के ले साध, खेत मा सरग उतर गे ।।

जइसे बोबे बीजहा

जइसे बोबे बीजहा, तइसे पाबे बीज । बर्रे काटा बोय के, चाउर खोजेे खीझ । चाउर खोजे खीझ, धान तै हर बिन बोये । काम बनाथे भाग , समझलव जी हर कोये ।। कह ‘रमेश‘ कवि राय, बुता करलव जी अइसे । करलव जी साकार, तोर सपना हे जइसे ।।

नागर बोहे कांध मा

नागर बोहे कांध मा, किसान जावत खेत । संग सुुवारी हा चले, कुदरी रपली लेत ।। कुदरी रपली लेत, बीजहा बोहे मुड़ मा । बइला रेंगे संग, चलत हे अपने सुर मा । पहुॅचे हे जब खेत, सरग ले लगथे आगर । अर्र अर-तता गीत, गात जब जोते नागर ।।

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