डहत सुवारी मोर हे, मइके मा तो जाय । पांव परे मा गा घलो, ससुरे ना तो आय ।। मोर गांव मा पूछ लव, सीधा साधा आॅव । दारू मंद ला छोड़ दे, मैं ना पान चबाॅव ।। अपन काम ले काम हा, मोला बने सुहाय । डहत सुवारी मोर हे.. काबर करे बिहाव हे, जाने ना भगवान । कतको बेरा देख ले, मारे केवल शान ।। देखय ना बोलय कभू, मोला मया लगाय । डहत सुवारी मोर हे .. केवल एके मांग हे, दाई ददा ल छोड़ । मोरे मइके मा चलव, ऐती नाता तोड़ । देख लेंव मैं जाय के, तभो ना तो भाय । डहत सुवारी मोर हे.. पढ़े लिखे के साध मा, माथा अपन ठठाॅव । धर डंडा कानून के, करे ओ काॅव-काॅव । कानून हवय अंधरा, कोन भला समझाय । डहत सुवारी मोर हे.. दुनिया दारी मा अभे, मोर लगे ना चेत । मरना जीना काय हे, जस नदिया के रेत ।। अपन खुदे के छाॅव हा, चाबे बर दउडाय । डहत सुवारी मोर हे..
पुस्तक: मानसिक शक्ति-स्वामी शिवानंद
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मानसिक शक्ति THOUGHT POWER का अविकल रूपान्तर लेखक श्री स्वामी शिवानन्द
सरस्वती
3 माह पहले