//दोहा मुक्तक// 1. बड़ आंगा-भारू लगय, मनखे के संसार । पहिली नर भारी लगिन, अब तो लगथे नार ।। जेन सुवारी हा कहय, होथे ओही काम । जावर जीयर संग मा,बइठे अलगे डार । 2. बरगद हा छतनार हे, डारा पाना संग । गूॅथे माला फूल ले, मन मा भरे उमंग ।। लकड़ी गठरी पोठ हे, बंधे एके डोर । बसव एक परिवार मा, घोर मया के रंग ।। 3. नारी ले घर परिवार हे, नारी ले संसार । चाहे ओ उबार लय, के बोरय मझधार । नारी चाहय जोर लय, चाहय देवय टोर । बांध धरव ये गोठ ला, बेटी बहू हमार । 4. पोथी पतरा तैं पढ़े, पढ़े नही संस्कार । बने बनय कइसे तुहर, सास ससुर ससुरार ।। लइका बच्चा अउ धनी, अतके मा भूलाय । अइसन मा कइसे भला, बनही घर परिवार ।। 5. अलग अलग हे अंगरी, एक हाथ के तोर । तभो तोर ओ हाथ हे, राखे का तैं टोर ।। गुण अवगुण सब मा भरे, देखव सोच विचार । काबर मइके मा हवस, अपन धनी ला छोड़ ।। 6. पथरा मा मूर्ति गढ़व, जइसे तोरे सोच । साज सजावट कर बने, माथा कलगी खोच ।। जन्मजात तो पाय हव, हुनर गढ़े के झार । छिनी हथौड़ी हाथ धर, धीरे धीरे टोच ।।
पुस्तक: मानसिक शक्ति-स्वामी शिवानंद
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मानसिक शक्ति THOUGHT POWER का अविकल रूपान्तर लेखक श्री स्वामी शिवानन्द
सरस्वती
3 माह पहले