नदिया-नरवा जलधार बिना, जइसे अपने सब इज्जत खोथे । मनखे मन काम बिना जग मा, दिनरात मुड़ी धर के बड़ रोथे ।। बिन काम-बुता मुरदा जइसे, दिनरात चिता बन के बरथे गा । मनखे मन जीयत-जागत तो, पथरा-कचरा जइसे रहिथे गा ।। सुखयार बने लइकापन मा, पढ़ई-लिखई करके बइठे हे । अब जांगर पेरय ओ कइसे, मछरी जइसे बड़ तो अइठे हे ।। जब काम -बुता कुछु पावय ना, मिन-मेख करे पढ़ई-लिखई मा बन पावय ना बनिहार घला, अब लोफड़ के जइसे दिखई मा ।। पढ़ई-लिखई गढ़थे भइया, दुनिया भर मा करमी अउ ज्ञानी । हमरे लइका मन काबर दिखते, तब काम-बुता बर मांगत पानी । चुप-चाप अभे मत देखव गा, गुण-दोष ल जाँचव पढ़ई लिखई के । लइका मन जानय काम-बुता, कुछु कांहि उपाय करौ सिखई के ।।
छत्तीसगढ़ी म भागवत कथा भाग-6.परिक्षित के गर्भ मा रक्षा
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‘छत्तीसगढ़ी म भागवत कथा’ एक महाकाव्य के रूप म लिखे जात हे ऐला धीरे-धीरे
कई भाग म प्रकाशित करे जाही । एला श्रीमद्भागवत अउ सुखसागर आधार ग्रंथ ले के
छत्तीस...
3 दिन पहले