काबर डारे मोर ऊपर,
गलगल ले सोना पानी
नवा जमाना के चलन
ताम-झाम ला सब भाथें
गुण-अवगुण देखय नही
रंग-रूप मा मोहाथें
मैं डालडा गरीब के संगी
गढ़थव अपन कहानी
चारदीवारी के फइका
दिन ब दिन टूटत हे
लइका बच्चा मा भूलाये
दाई-ददा छूटत हे
मैं अढ़हा-गोढ़हा लइका
दाई के करेजाचानी
संस्कृति अउ संस्कार बर
कोनो ना कोनो प्रश्न खड़े हे
अपन गांव के चलन मिटाये बर
देशी अंग्रेज के फौज खड़े हे
मैं मंगल पाण्डेय
लक्ष्मीबाई के जुबानी
गलगल ले सोना पानी
नवा जमाना के चलन
ताम-झाम ला सब भाथें
गुण-अवगुण देखय नही
रंग-रूप मा मोहाथें
मैं डालडा गरीब के संगी
गढ़थव अपन कहानी
चारदीवारी के फइका
दिन ब दिन टूटत हे
लइका बच्चा मा भूलाये
दाई-ददा छूटत हे
मैं अढ़हा-गोढ़हा लइका
दाई के करेजाचानी
संस्कृति अउ संस्कार बर
कोनो ना कोनो प्रश्न खड़े हे
अपन गांव के चलन मिटाये बर
देशी अंग्रेज के फौज खड़े हे
मैं मंगल पाण्डेय
लक्ष्मीबाई के जुबानी
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