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संदेश

कतका झन देखे हें-

अरे जवानी

अरे जवानी भटकत काबर, रद्दा छोड़ । परे नशा पानी के चक्कर, मुँह ला मोड़ ।। धरती के सेवा करना हे, होय सपूत । प्यार-व्यार के चक्कर पर के, हवस कपूत ।।

बेजाकब्जा गाँव-गाँव

बेजाकब्जा गाँव-गाँव, लगत हवय कोढ़ । अपन बिमारी रखे तोप, कमरा ला ओढ़ ।। अंधरा-भैरा साधु चोर, हवय एक रंग । बचही कइसे एक गाँव, दिखय नहीं ढंग ।। -रमेश चौहान

भाव

भाव में दुख भाव मेॆं सुख, भाव में भगवान । भाव  जग व्यवहार से ही, संत है इंसान । भाव चेतन और जड़ में,  भाव से ही धर्म । भाव तन मन ओढ़ कर ही, करें अपना कर्म ।।

दोष देत सरकार ला, सब पिसत दांत हे

दोष देत सरकार ला, सब पिसत दांत हे । ओखर भीतर झाक तो, ओ बने जात हे । जनता देखय नही, खुद अपन दोष ला । अपन स्वार्थ मा तो परे, बांटथे  रोष ला ।। वो लबरा हे कहूॅं, तैं सही होय हस ? गंगा जल अउ दूध ले, तैं कहां धोय हस ?? तैं सरकारी योजना, का सही पात हस ? होके तैं हर गौटिया, गरीब कहात हस ?? बेजाकब्जा छोड़ दे, तैं अपन गांव के । चरिया परिया छोड़ तैं, रूख पेड़ छांव के । लालच बिन तैं वोट कर, आदमी छांट के । नेता नौकर तोर हे, तैं राख हांक के ।।

दाई के गोरस सही, धरती के पानी

दाई के गोरस सही, धरती के पानी । दाई ले बड़का हवय, धरती हा दानी ।। सहत हवय दूनो मनन, तोरे मनमानी । रख गोरस के लाज ला, कर मत नादानी ।। होगे छेदाछेद अब, धरती के छाती । कइसे बरही तेल बिन, जीवन के बाती ।। परत हवय गोहार सुन, अंतस मा तोरे । पानी ला खोजत हवस, गाँव-गली खोरे ।। रहिही जब जल स्रोत हा, रहिही तब पानी । तरिया नरवा बावली, नदिया बरदानी ।। पइसा के का टेस हे, पइसा ला पीबे । पइसा मा मिलही नही, तब कइसे जीबे ।।

हे स्वाभिमान के,दरकार

जचकी ले मरनी, लाख योजना, हे यार । फोकट-सस्ता मा, बाँटत तो हे, सरकार ।। ढिठ होगे तब ले, हमर गरीबी, के बात । सुरसा के मुँह कस, बाढ़त हावे, दिन रात ।। गाँव-गाँव घर-घर, दिखे कंगला, भरमार । कागज के घोड़ा, भागत दउड़त, हे झार ।। दोषी जनता हे, या दोषी हे, सरकार । दूनो मा ता हे, स्वाभिमान के, दरकार ।।

मनखे तैं नेक हो

जात-धरम, सबके हे, दुनिया के जीव मा । रंग-रूप, अलग-अलग, सब निर्जीव मा ।। जोड़ रखे, अपन धरम, धरती बर एक हो । देश एक, अपने कर, मनखे तैं नेक हो ।। 

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