दाई के गोरस सही, धरती के पानी ।
दाई ले बड़का हवय, धरती हा दानी ।।
सहत हवय दूनो मनन, तोरे मनमानी ।
रख गोरस के लाज ला, कर मत नादानी ।।
होगे छेदाछेद अब, धरती के छाती ।
कइसे बरही तेल बिन, जीवन के बाती ।।
परत हवय गोहार सुन, अंतस मा तोरे ।
पानी ला खोजत हवस, गाँव-गली खोरे ।।
रहिही जब जल स्रोत हा, रहिही तब पानी ।
तरिया नरवा बावली, नदिया बरदानी ।।
पइसा के का टेस हे, पइसा ला पीबे ।
पइसा मा मिलही नही, तब कइसे जीबे ।।
दाई ले बड़का हवय, धरती हा दानी ।।
सहत हवय दूनो मनन, तोरे मनमानी ।
रख गोरस के लाज ला, कर मत नादानी ।।
होगे छेदाछेद अब, धरती के छाती ।
कइसे बरही तेल बिन, जीवन के बाती ।।
परत हवय गोहार सुन, अंतस मा तोरे ।
पानी ला खोजत हवस, गाँव-गली खोरे ।।
रहिही जब जल स्रोत हा, रहिही तब पानी ।
तरिया नरवा बावली, नदिया बरदानी ।।
पइसा के का टेस हे, पइसा ला पीबे ।
पइसा मा मिलही नही, तब कइसे जीबे ।।
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