दोष देत सरकार ला, सब पिसत दांत हे ।
ओखर भीतर झाक तो, ओ बने जात हे ।
जनता देखय नही, खुद अपन दोष ला ।
अपन स्वार्थ मा तो परे, बांटथे रोष ला ।।
वो लबरा हे कहूॅं, तैं सही होय हस ?
गंगा जल अउ दूध ले, तैं कहां धोय हस ??
तैं सरकारी योजना, का सही पात हस ?
होके तैं हर गौटिया, गरीब कहात हस ??
बेजाकब्जा छोड़ दे, तैं अपन गांव के ।
चरिया परिया छोड़ तैं, रूख पेड़ छांव के ।
लालच बिन तैं वोट कर, आदमी छांट के ।
नेता नौकर तोर हे, तैं राख हांक के ।।
ओखर भीतर झाक तो, ओ बने जात हे ।
जनता देखय नही, खुद अपन दोष ला ।
अपन स्वार्थ मा तो परे, बांटथे रोष ला ।।
वो लबरा हे कहूॅं, तैं सही होय हस ?
गंगा जल अउ दूध ले, तैं कहां धोय हस ??
तैं सरकारी योजना, का सही पात हस ?
होके तैं हर गौटिया, गरीब कहात हस ??
बेजाकब्जा छोड़ दे, तैं अपन गांव के ।
चरिया परिया छोड़ तैं, रूख पेड़ छांव के ।
लालच बिन तैं वोट कर, आदमी छांट के ।
नेता नौकर तोर हे, तैं राख हांक के ।।
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