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संदेश

कतका झन देखे हें-

करत हवँव गोहार दाई

जय जय दाई नवागढ़ के, जय जय महामाय करत हवँव गोहार दाई, सुन लेबे पुकार । एक आसरा तोर हावे, पूरा कर दुलार ।। दुनिया वाले कहँव काला, मारत हवय लात । पइसा मा ये जगत हावे, जगत के ये बात ।। लगे काम हा छूट गे हे, परय पेट म लात । बिना बुंता के एक पइसा, आवय नही हाथ ।। काम बुता देवय न कोनो,  देत हे दुत्कार । करत हवँव गोहार दाई, सुन लेबे पुकार । नान्हे-नान्हे मोर लइका, भरँव कइसे पेट । लइकामन हा करय रिबि-रिबि, करँव कइसे चेत ।। मोर पाप ला क्षमा करदौं, क्षमा कर दौ श्राप । काम-बुता अब हाथ दे दौ, कहय लइका बाप ।। काम-बुता अउ बिना पइसा, हवय जग बेकार । करत हवँव गोहार दाई, सुन लेबे पुकार । करत हवँव गोहार दाई, सुन लेबे पुकार । एक आसरा तोर हावे, पूरा कर दुलार ।।

नवा जमाना आगे

मिलत नई हे गाँव मा, टेक्टर एको खोजे । खेत जोतवाना हवय, खोजत हँव मैं रोजे ।। बोवाई हे संघरा, नांगर हा नंदागे । नवा जमाना खेती नवा, नवा जमाना आगे ।।

हमर किसानी, बनत न थेगहा

मिलत हवय ना हमर गांव मा, अब बनिहार गा । कहँव कोन ला सुझत न कूछु हे, सब सुखियार गा ।। दिखय न अधिया लेवइया अब, धरय न रेगहा । अइसइ दिन मा हमर किसानी, बनय न थेगहा ।।

जब कुछु आही

बुता काम बिना दाम, मिलय नही ये दुनिया । लिखे पढ़े जेन कढ़े, ओही तो हे गुनिया ।। बने पढ़व बने कढ़व, शान-मान यदि चाही । पूछ परख तोर सरख, होही जब कुछु आही ।

अरे बेटा, गोठ सुन तो,

अरे बेटा, गोठ सुन तो, चलय काम कइसे । घूमत हवस, चारो डहर, घूमय मन जइसे ।। चारो डहर, नौकरी ला, खोजत हस दुनिया । आसा छोड़, अब येखरे, ये हे बैगुनिया ।। जांगर पेर, काम करथे, घर के ये भइसा । खेत जाबो, हम कमाबो, पाबो दू पइसा ।। तोर अक्कल, येमा लगा, कर खेती बढ़िया । ठलहा होय, बइठ मत तैं, बन मत कोढ़िया ।।

‘चलायमान कोन हे‘

गुमान मन करथे, मैं हा हवँव चलायमान । स्वभाव काया के, का हे देखव तो मितान ।। बिना टुहुल-टाहल, काया हे मुरदा समान । जभेच तन ठलहा, मन हा तो घूमे जहाँन ।। जहान घूमे बर, मन हा तो देथे फरमान । चुपे बइठ काया, गोड़-हाथ ला अपन तान ।। निटोर देखत हस, कुछ तो अब अक्कल लगाव । विचार के देखव, ये काखर हावे स्वभाव ।।

जाके बेटा खेत डहर

जाके बेटा खेत डहर, कांटा ला सकेल । आवत हावे मानसून, खातू ला ढकेल ।। बोना हावय धान-पान, खेत-खार निढाल । बीज-भात ला साफ करत, नांगर ला निकाल ।।

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