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अप्रैल, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

देखत रद्दा तोर गा

देखत रद्दा तोर गा, आंखी गे पथराय। संझा आहूू तै कहे, अब ले नइ तो आय ।। अब ले नइ तो आय, तोर कोनो संदेशा । फरकत आंखी मोर, लगत मोला अंदेशा ।। होबे कोनो मेर, बने गदहा कस रेकत । पिये छकत ले दारू, परे होबे तै देखत ।।

धन धन वो दाई ददा

धन धन वो दाई ददा, धन धन ओखर भाग । धन वो बेटी बेटवा, लगे न जेमा दाग ।। लगे न जेमा दाग, केरवछ भीतर रहि के । धरे जेन संस्कार, मार फेसन के सहि के ।। होत जेखर बिहाव, खुशी तो मनाय जन जन । उड़हरिया गे भाग, लोग सब कहय ग धन धन ।।

खड़े कोन हे नीत मा

खड़े कोन हे नीत मा, देत कोन हे संग । दुनिया ला तो देख के, नीत रीत हे दंग ।। नीत रीत हे दंग, कुकुर गति अपने देखे । करत हे दूर छूर, आदमी डंडा ले के ।। अपना फायदा देख, खुदेे अपने संग   लड़़ेे । छोड़ नीत के संग, अलग रद्दा जेन खड़े ।।

जवा बुढ़ापा ले कहय

जवा बुढ़ापा ले कहय, निकल गेय दिन तोर । राम नाम भज तै बइठ, कर मत जादा शोर ।। कर माता जादा शोर, टांग हर बात झन अड़ा । टुकुर टुकुर तै देख, नजर ला अपन झन गड़ा । बिते जमाना तोर, नवा दिन के बहत हवा । दुनियादारी आज, लगत हे एकदम जवा ।।

देख बड़ोरा काल के

देख बड़ोरा काल के, हरागे मोर चेत । परवा कठवा उड़ा गे, काड़ पटिया समेत ।। काड़ पटिया समेत, गाय कोठा के मोरे । हम देखत रहिगेंन, करेजा मुॅह मा बोरे ।। धन्न भाग भगवान, हमन बाचगेंन कोरा । कहत रहिगेंन राम, काल के देख बड़ोरा ।। डहे रहिन हे बेंदरा, तेला हमन सहेंन । खपरा उतार छानही, टिन ल ठोकें रहेंन ।। टिन ल ठोकें रहेंन, उधारी मा ले ले के । अभी रहिस छूटाय, उधारी हा ले दे के ।। होनी हे बलवान, हमर तो कुछु न लहे । काबर तै भगवान, हमन ला काहेक डहे ।।

काबर धरती डोलगे

काबर धरती डोलगे, कांपत हे इंसान । कइसन माया तोर हे, हे हमरे भगवान ।। हे हमरे भगवान, हजारो झन तो मरगे । रच रच ले घर द्वार, देख बोइर कस झरगे ।। गंवा गे परिवार, कोन अब ओखर रहबर । खेले अइसन खेल, बने तै पथरा काबर ।। -रमेश चौहान

जाना नोनी ससुरार

मोरे कोरा छोड़ तै, बन बेटी हुशियार । दुनिया के ये रीत हे, जाना नोनी ससुरार ।। जाना नोनी ससुरार, खुशी दुनिया के ले ले । महतारी ला छोड़, सास के बेटी होले ।। तोर सास ससुरार, सरग आवय तोरे । पागा तोरे हाथ, लाज ला रखबे मोरे ।।

सुत उठ के देख तो

सुत उठ के देख तो, बबा मांगय चाय । लइका मन अब ले सुते, देख बबा चिल्लाय ।। देख बबा चिल्लाय, कोडि़हा नाती नतुरा । दू आखर ला जान, कहे अपने ला चतुरा ।। उवत सुरूज ला देख, बेटवा झन तो तै रूठ । हवे फायदा घात, बिहनिया तै तो सुत उठ ।।

आंखी रहिके अंधरा

आंखी रहिके अंधरा, मनखे आज कहाय । चटअरहा हे जेन हा, कोंदा तो बन जाय ।। कोंदा तो बन जाय, होय जब गुनाह आघू । दुर्घटना ला देख, करे वो मुॅंह ला पाछू ।। आदमीयत ला मार, बनय ना कोनो साखी । घूमत हे बदमाश, देखा के हमला आंखी ।।

जनउला हे अबूझ

का करि का हम ना करी, जनउला हे अबूझ । बात बिसार तइहा के, देखाना हे सूझ ।। देखाना हे सूझ, कहे गा हमरे मुन्ना हा । हवे अंधविश्वास, सोच तुहरे जुन्ना हा ।। नवा जमाना देख, कहूं  तकलीफ हवय का । मनखे मनखे एक, भेद थोरको हवय का ।। -रमेश चौहान

मरगे एक किसान

कुण्‍डलियां दिल्ली के हड़ताल मा, मरगे एक किसान । गोठ बात अब हे चलत, काबर खोइस जान ।। काबर खोइस जान, दोष काला हम देइन । मउसम के वो मार, फसल नुकसानी लेइन ।। जेन सकेले भीड़, उड़ावत रहिन ग खिल्ली । वाह पुलिस सरकार, जेन बइठे हे दिल्ली ।। -रमेश चौहान

बेटा जियान नइ परय

बेटा जियान नइ परय, कमावत हवे बाप । दुनो हाथ ले तै उलच, दिखत रह टीप-टाप ।। दिखत रह टीप-टाप, दउड़ सरपट बाइक मा । साइकील मा बाप, मजा पाये लाइफ मा ।। जिये तोर बर बाप, निकाले दुख के लेटा । तोर ददा के काम, याद तै रखबे बेटा ।।

सरकारी काम

रोटी अपने सेकथे, कोनो ला तै देख । नेता अधिकारी लगय, चट्टा बट्टा एक । चट्टा बट्टा एक, करमचारी चपरासी । बैतरनी हे घूस, घाट दफ्तर चौरासी ।। भटकत मनखे जीव, भोचकत हवे कछोटी । कराय बर तो काम, खड़े हे बिन खाय रोटी ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

सीधा-सादा

सीधा-सादा जेन हे, जोजवा तो कहाय । दुनिया दारी छोड़ के, अपने रद्दा जाय । अपने रद्दा जाय, सहय अपमान  तभो ले । झूठ लबारी छोड़, पाय धोखा ग सबो ले ।। का होही भगवान, पाप होवत हे जादा । काबर तो दुख पाय, जगत मा सीधा-सादा ।।

आगे दिन बइसाख के

आगे दिन बइसाख के, हवा चलत हे तात । हरर हरर के दिन हवय, कोनो ल कहां भात ।। कोनो ल कहां भात, पसीना तर तर आथे । सब प्राणी ला आज, छांव अउ ठंड़ा भाथे ।। पंखा कूलर फ्रीज, बने सब झन ला लागे । बाढ़े करसी भाव, देख रे गरमी आगे ।।

भोले बाबा

भोले बाबा हा अपन, तन म भभूत लगाय । सांप बिच्छु के ओ बने, अपन गहना सजाय ।। अपन गहना सजाय, बाघ के छाला बांधे । जटा गंगा बिठाय, चंदा ला मुड़ मा सांधे ।। बइठे बइला पीठ, डमरू तब ओखर बोले । तिरसूल धरे हाथ, दिखे हे सुघ्घर भोले ।।

भज मन सीताराम तै

भज मन सीताराम तै, होहि तोर उद्धार । जगत पिता तो राम हे, सीता जगत अधार ।। सीता जगत अधार, गोहरा बिपत अमन मा । माटी चोला तोर, सोच का रखे बदन मा । हे अटल तोर मौत, मोह माया ला अब तज । राम राम कह राम, अरे मन राम राम भज ।।

हे हनुमान प्रभु

ले सुध हे हनुमान प्रभु, राम दूत बजरंग । मूरत सीताराम के, रखथस अपने संग । रखथस अपने संग, चीर छाती तै देखाये । ओखर तै रखवार, जगत ला खुदे बताये । बिपत हरइया नाथ, बिपत मोरो हर दे । पखारंव प्रभु पांव, दास अपने तै कर ले ।।

जग महतारी शारदे

जग महतारी शारदे, हाथ जोड़ परनाम । हमरे मन मा हे भरे, कइसन के अग्यान।। कइसन के अग्यान, देख के जी काॅपत हे । बचा हमरे परान, हृदय तोला झांकत हे । परत हन तोर पांव, हमर कर तै रखवारी । लइका हम नादान, तही तो जग महतारी ।।

हे लंबोदर

हे लंबोदर गौरी सुत, हे गजानन गणेश । श्रद्धा अउ विश्वास के, भेट लाये ‘रमेश‘ ।। भेट लाये ‘रमेश‘, कृपा मोरे ऊपर कर । अब्बड़ हे तकलीफ, नाथ अब ऐला तै हर ।। विघन विनाशक आच, बचा ना प्रभु बाधा ले । मनखे के ये देह, भरे जेमा व्याधा हे ।।

कतका दुख के बात हे

कतका दुख के बात हे, नैतिकता ह सिराय । आत्म सम्मान बेच के, फोकट ला सब भाय ।। फोकट ला सब भाय, लबारी बोलय मनखे । ले सरकारी लाभ, गैर जरूरत मंद चखे ।। लचार जरूरत मंद, इहां तो खाते भटका ।। जनता नेता चोर, इहां भरगे हे कतका ।। -रमेश चौहान

अंग्रेजी तै सीख के

अंग्रेजी तै सीख के, बने करे हस काम । देश परदेश मा बने, होही तोरे नाम ।। होही तोरे नाम, विश्व भाषा तै जाने । विश्व हमर परिवार, बने तै हर पहिचाने ।। भोकवा हे ‘रमेश‘, पढ़े तक नई सके जी । रोमन म लिखा तोर, लगय हिन्दी हा अंग्रेजी ।।

लाज के छिलका

छिलका भीतर रस भरे, आमा गजब मिठाय । आमा के ये स्वाद ला, छिलका रखय बचाय ।। छिलका रखय बचाय, घाम धुर्रा बैरी ले । तरिया नरवा पार, रखय पानी गहरी ले । पानी हर बोहाय, होय जब पार म भुलका । रख ले तन के लाज, खोल मत ऐखर छिलका ।।

चिंता राड़ी हवे

बड़े बड़े महल अटारी अउ मोटर गाड़ी हवे । इहां उहां दुकान दारी अउ खेती बाड़ी हवे । दसा डरय अपन बिछौना अतका पइसा कोठी हे, कहां हवे सुकुन पसेरी भर, चिंता राड़ी हवे ।। -रमेश चौहान

चूरी

चूरी हरियर अउ पियर, भाही तोरे हाथ । पहिर बाह बर हांस के, अमर होय अहिवात । अमर होय अहिवात, धनी के मया मिलय ना । सुघ्घर लगही रूप, देख देखत रहही ना ।। खन खन करही हाथ, मया के बनही धूरी । बलम जाय परदेश, देवावय सुरता चूरी ।।

होगे शहीद फेर गा

होगे शहीद फेर गा, हमरे सात जवान । मारे हे चोरी लुका, नक्सली हैयवान ।। नक्सली हैयवान, घात लगाय सुकमा मा । करे नीच करतूत, हमर सुघ्घर बस्तर मा ।। लगथे मोला ‘रमेश‘, आदमीयत हा सोगे । गोली के बंदूक, चना फूटेना होगे ।।

मोर नवागढ गांव

गांव नवागढ़ मोर हे, छत्तीसगढ़ म एक । नरवरगढ़ के नाव ले, मिले इतिहास देख ।। मिले इतिहास देख, गोडवाना के चिन्हा । राजा नरवरसाय के, रहिस गढ़ सुघ्घर जुन्हा ।। जिहां हवे हर पांव, देव देवालय के गढ़ । गढ़ छत्तीस म एक, हवय गा एक नवागढ़।।1।ं मंदिर हे चारो दिसा, कोनो कोती देख । सक्ति हवय उत्ती दिसा, करे दया अनलेख ।। करे दया अनलेख, हमर तो कासी काबा । मांगन तरिया पार, बिराजे भोले बाबा ।। बुड़ती जाके देख, शारदा मॉं के मंदिर । माना तरिया पार, महामाई के मंदिर ।।2।। पार जुड़ावनबंध मा, लक्ष्मी-नारायेण । भैरव भाठा खार मा, भैरव ला जानेन ।। देख दिसा भंडार, हवय भैरव खारे मा । बिराजे कृष्ण राम, सुरकि तरिया पारे मा शंकरजी रक्सेल, नवातरिया मन भावन । जब मन होय अषांत, ऐखरे पार जुड़ावन ।।3।। हवे महामाई इहां, राजा के बनवाय । दाई असीस देत हे, जेन दुवारी आय ।। जेन दुवारी आय, मनौती पूरा पावय । भगत इहां अनलेख, दुनो नवराती आवय ।। माना तरिया पार, देख लव आके भाई। सितला दुरगा संग, बिराजे हे महामाई ।।4।। छोईहा नरवा हवय, हमर गांव के बीच । गुरूद्वारा हे पार मा, लेथे सबला खीच ।। लेथे सबला खीच, जिहां सिक्

मोर छत्तीसगढ़ मा, साल भर तिहार हे

मोर छत्तीसगढ़ मा, साल भर तिहार हे मोर छत्तीसगढ़ मा, तो साल भर तिहार हे  लगे जइसे दाई हा, करे गा सिंगार हे। हम आषाढ महिना, रथयात्रा मनाथन घर घर कथा पूजा, देव ला जोहार हे ।। पधारे जगन्नाथ हा, सजे सुघ्घर रथ मा गांव गांव गली गली, करे विहार हे । भोले बाबा सहूंहे हे, सावन महिना भर करलव गा उपास, सावन सोम्मार हे ।। येही मा हरेली आथे, किसान हा हरसाथे लइका खापे गा गेड़ी, मजा भरमार हे । भाई बहिनी के मया, सावन हा सजोवय बहिनी बांधय राखी, देत दुलार हे ।।  भादो मा खमरछठ, पसहर के चाऊर खाके रहय उपास, दाई हमार हे । आठे कन्हैया मनाय, जनमदिन कृष्‍णा के दही लूट के गांव मा, बड़ खुमार हे ।।   दाई माई बहिनी के, आगे अब तिजा पोरा  जोहत लेनहार ला, करे वो सिंगार हे । लइकापन के जम्मो, संगी सहेली ह मिले पटके जब तो पोरा, परत गोहार हे । घर घर करू भात, जा जा मया मा तो खाथें आज तिजा के उपास, काली फरहार हे । ठेठरी खुरमी फरा, आनी बानी के कलेवा नवा नवा लुगरा ले, नोनी गुलजार हे । तिजा-पोरा मइके के, सुध बढ़ावव भादो ठेठरी-खुरमी पागे, मइके दुलार हे । आगे भादो के महिना, गणराजा हा पधारे  गणेश भक्ति मा डूबे, अब तो संसार हे।  कुलकत ल

मउसम के ये मार

मउसम के ये मार मा, मरत हन हम किसान । परे करा पाके चना, कइसे करी मितान ।। कइसे करी मितान, सुझत नइ हे कुछु हमला । कनिहा गे अब टूट, धरी कइसे हम दम ला ।। उत्तम लगे व्यपार , नौकरी लागय मध्यम । खेती लगय नीच, घात करथे जब मउसम ।।

पंगत

पंगत खाना के चलन, हो जाही का बंद। चलन रहिस परिवार के, जिहां छिड़े हे जंग ।। जिहां छिड़े हे जंग, संग देवय ना कोनो । पइसा हे परिवार, बफर स्टेटस के मोनो ।। नवा फेसन ‘रमेश्‍ा‘,  नवा लइका के संगत । कनिहा नवाय कोन, लगावय जेने पंगत ।।

नवा गढ़बो हम सपना

सपना देखा के बने, छेड़े काबर जंग । काबर बिहाव तै करे, दिल तोरे जब तंग ।। दिल तोरे जब तंग, भरम के नइये दवई । झगरा लड़ई रोज, बाढ़ गे तोरे पियई ।। सगली भतली खेल, समझ तै करे बचपना । जगा अपन विष्वास, नवा गढ़बो हम सपना।।

मुक्तक

देख देख के दूसर ला दांत ला निपोरत हन । बात आय अपने मुड़ अगास ला निटोरत हन ।। कोन संग देवय हमला आय बिपत भारी, आदमी बने आदमी ला देख गा अगोरत हन ।। -रमेश चौहान

देखय जनता हार

नगरी निकाय हा कहय, अपने ला लाचार। खुदे प्रस्ताव लाय के, खुदे कहय बेकार ।। खुदे कहय बेकार, बने सपना देखा के । आघू के वो शेर, करय का पाछु लुका के ।। होगे सालों साल, कहत भठ्ठी हा हटही । देखय जनता हार, जीत गे निकाय नगरी ।

गली मा करथे कचरा

कचरा फइले खोर मा, काला हे परवाह । खुंदत कचरत जात हे, आंखी मुंदे राह ।। आंखी मुंदे राह, जात हे जम्मो मनखे । नेता मन ला देत, दोश जम्मो झन तन के ।। गली करे बर साफ, परे ना कोनो पचरा । जान बूझ के फेक, गली मा करथे कचरा ।।

मन के ताकत

चित्र गुगल से साभार मन के ताकत होत हे, जग म सबले सजोर । मन बड़ चंचल होय गा, पहिली ऐला जोर ।। पहिली ऐला जोर, अंग पांचो रख काबू । जगा अपन विस्वास, फेर होही बड़ जादू ।। शेर बघवा पछाड़, जोश मा तै हर तन के । छुटे तोर जे काम, होय अब तोरे मन के ।।

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