का निरधन धनवान का, दारू पिये सब ठाठ ।
का कुरिया अउ का महल, का रद्दा अउ बाट ।।
का सुख अउ दुख के बखत, का दिन अउ का रात ।
जेती पावव देख लव, बइठे चार जमात ।।
दारु पिये ले आदमी, दरुहा नई कहाय ।
दारु पिये इंसान ला, तब दरुहा बन जाय ।।
दरुहा होथे कुकुर अस, लहके जीभ लमाय ।
दारु पाय बर जेन हा, पूछी अपन हलाय ।।
दारु पिये ओ कोलिहा, बघवा कस नरिआय ।
बघवा ले बधिया बनय, लद्दी मा धस जाय ।।
का कुरिया अउ का महल, का रद्दा अउ बाट ।।
का सुख अउ दुख के बखत, का दिन अउ का रात ।
जेती पावव देख लव, बइठे चार जमात ।।
दारु पिये ले आदमी, दरुहा नई कहाय ।
दारु पिये इंसान ला, तब दरुहा बन जाय ।।
दरुहा होथे कुकुर अस, लहके जीभ लमाय ।
दारु पाय बर जेन हा, पूछी अपन हलाय ।।
दारु पिये ओ कोलिहा, बघवा कस नरिआय ।
बघवा ले बधिया बनय, लद्दी मा धस जाय ।।
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