जीयत भर खाये हवन, अपन देश के नून ।
छूटे बर कर्जा अपन, दांव लगाबो खून ।।
जीवन चक्का जाम हे, डार हॅसी के तेल ।
सुख-दुख हे दिन रात कस, हॅसी-खुशी ले झेल ।।
चल ना गोई खाय बर, चुर गे हे ना भात ।
रांधे हंव मैं मुनगा बरी, जेला तैं हा खात ।।
महर महर ममहात हे, चुरे राहेर दार ।
खाव पेट भर भात जी, घीव दार मा डार ।।
परोसीन हा पूछथे, रांधे हस का साग ।
हमर गांव के ये चलन, रखे मया ला पाग ।।
दाई ढाकय मुड़ अपन, देखत अपने जेठ ।
धरे हवय संस्कार ला, हे देहाती ठेठ ।।
खेती-पाती बीजहा, लेवव संगी काढ़ ।
करिया बादर छाय हे, आगे हवय असाढ़ ।।
बइठे पानी तीर मा, टेर करय भिंदोल ।
अगन-मगन बरसात मा, बोलय अंतस खोल ।।
बइला नांगर फांद के, जोतय किसान खेत ।
टुकना मा धर बीजहा, बावत करय सचेत ।।
मुंधरहा ले जाग के, जावय खेत किसान ।
हॅसी-खुशी बावत करत, छिछत हवय गा धान ।।
झम झम बिजली हा करय, करिया बादर घूप ।
कारी चुन्दी बगराय हे, धरे परी के रूप ।।
आज काल के छोकरा, एती तेती ताक ।
अपन गांव परिवार के, काट खाय हे नाक ।।
मोरे बेटा कोढ़िया, घूमत मारय शान ।
काम-बुता के गोठ ला, एको धरय न कान ।।
जानय न घाम थोरको, बइठे रहिथे छाॅंव ।
बेटा मोर किसान के, खेत धरय ना पाॅंव ।।
चल चल बेटा खेत मा, देबे मोला साथ ।
बुता सिखा हूॅं आज मैं, धर के तोरे हाथ ।।
छूटे बर कर्जा अपन, दांव लगाबो खून ।।
जीवन चक्का जाम हे, डार हॅसी के तेल ।
सुख-दुख हे दिन रात कस, हॅसी-खुशी ले झेल ।।
चल ना गोई खाय बर, चुर गे हे ना भात ।
रांधे हंव मैं मुनगा बरी, जेला तैं हा खात ।।
महर महर ममहात हे, चुरे राहेर दार ।
खाव पेट भर भात जी, घीव दार मा डार ।।
परोसीन हा पूछथे, रांधे हस का साग ।
हमर गांव के ये चलन, रखे मया ला पाग ।।
दाई ढाकय मुड़ अपन, देखत अपने जेठ ।
धरे हवय संस्कार ला, हे देहाती ठेठ ।।
खेती-पाती बीजहा, लेवव संगी काढ़ ।
करिया बादर छाय हे, आगे हवय असाढ़ ।।
बइठे पानी तीर मा, टेर करय भिंदोल ।
अगन-मगन बरसात मा, बोलय अंतस खोल ।।
बइला नांगर फांद के, जोतय किसान खेत ।
टुकना मा धर बीजहा, बावत करय सचेत ।।
मुंधरहा ले जाग के, जावय खेत किसान ।
हॅसी-खुशी बावत करत, छिछत हवय गा धान ।।
झम झम बिजली हा करय, करिया बादर घूप ।
कारी चुन्दी बगराय हे, धरे परी के रूप ।।
आज काल के छोकरा, एती तेती ताक ।
अपन गांव परिवार के, काट खाय हे नाक ।।
मोरे बेटा कोढ़िया, घूमत मारय शान ।
काम-बुता के गोठ ला, एको धरय न कान ।।
जानय न घाम थोरको, बइठे रहिथे छाॅंव ।
बेटा मोर किसान के, खेत धरय ना पाॅंव ।।
चल चल बेटा खेत मा, देबे मोला साथ ।
बुता सिखा हूॅं आज मैं, धर के तोरे हाथ ।।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें